"जो मैंने देखा"
उस प्रिय की मन-मोहनी छवि,
प्राणों मेंं बसी,रची स्मृति उसकी,
उर पुलकित उसकी चंचल नयनो से,
अब सोचूं क्या करूँ संचय संसार मेंं ।
उसकी अरुणोदय-सा,कनक -सा मुख,
जागृति ऐसी हुई जैसे कुछ स्वपनमय-सा,
अधर वैसी,जैसी मधुरशाला का प्याला,
स्वर ऐसी जैसे हो राग-स्वर का संगम।
लावण्यमयी,विस्मित उसकी काया-छाया,
अद्भुत,अद्वितीय,मोहित करती हर अभिनय,
उनकी सौंदर्य के मोह-पाश से हो अभिभूत,
उन्हें जो मैंने देखा कर दिया सर्वत्र समर्पित।
एस.के.पूनम।
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