"जिन्दगी क्या है"
इसे परिभाषित करना सम्भव नहीं है क्योंकि सबका अपना दृष्टिकोण होता है।कोई इसे नकारात्मक रूप में देखता है तो
कोई सकारात्मक रूप में।
यह विषय साधारण नहीं है।
एस.के.पूनम।-
"कोई कुछ भी कहे"
किरणें जो फैली,धरती को उज्जवल कर गई,
जिन आँखों से दुःख की बूंदें गिरती थी,
अपनो को देख खुशियों से वो भर गई,
बच्चे की किलकारी,माँ को आनंदित कर गई,
कोई कुछ भी कहे,कुछ ख्वाहिशें पूरी हो गई।
वीरों की वीरता से,धरती झुमने लगी,
स्वागत में तरु-लता राहों पर बिछ गई,
मेघ मुस्कुरा कर उनकी प्यास बुझा गई,
कोई कुछ भी कहे,उनका जीना धन्य हो गया।
एस.कू.पूनम।
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"आजकल दिखते नहीं"
ऋतुओं का क्या कहना,
वह तो बदलते रहती है।
नदियों का क्या कहना,
वह प्रवाहित होते रहती है।
चाँद का भी क्या कहना,
चाँदनी बिखेरती रहती है।
पर सखी कहाँ रहती हो,
तुआजकल दिखती नहीं ।
कलियों का क्या कहना है,
वन-बागों में खिलते रहते हैं।
भौरों का भी क्या कहना है,
पंखुड़ियों संग मस्ती करते हैं।
सूरज का भी क्या कहना है,
बादलों संग लुकाछिपी करते हैं।
पर सखी तु कहाँ रहती हो,
तुम आजकल दिखती नहीं।
तरसती नयनों का क्या कहना,
अपने प्रियतमा को ढूंढते रहती हैं।
विरह की अग्नि में जलते रहते हैं,
स्मृति के झरोखे से आँसू गिरते हैं।
पर सखी तु आजकल दिखती नहीं,
तेरी यादों की तन्हाई में उदास रहता हूँ।
एस.के.पूनम।
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"ना चाहते हुए भी"
विष हो या अमृत हो जीवन में,
कंटकों से भरी राह हो जीवन में,
चल लेते हैं,पी लेते हैं सहजता से,
आओ सखी ना चाहते हुए भी जी लेते हैं।
सखी अब प्यार से इंकार करो,
या सखी प्यार का इक़बाल करो,
सखी सब गवाँ बैठा हूँ तेरी चाहत में ,
ना चाहते हुए भी तुम्हें स्वीकार किया।
स्वीकार किया, तुम भी स्वीकार करो,
मधुर क्षणों को तुम भी ज़रा याद करो,
अवश्य तेरी भी अँखियाँ भर आएंगी,
ना चाहते हुए भी प्रेम का गीत गाओगी।
एस.के.पूनम।
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"विकल्प"
सधन कंटकों से भरी राह है,
हर प्रवाह में सन्निहित भँवर है,
आगे अनगिनत घोर संकट है,
संघर्ष के अतिरिक्त विकल्प नहीं है ।
विघ्नों के कांटों ने बिंधा है कई बार,
सी लेता हूँ धायल हृदय को कई बार,
जी लेता हूँ मुस्कुराते हुए बार- बार,
विकल्प नहीं होता है इसके अतिरिक्त।
नियती लूट लेता है सब कुछ ,
टूट जाता है मन मेंं बसा घरौंदा,
जग भी बैरी हो जाता है कई बार,
पर नहीं छूटता पकड़े हुए हाथ।
प्राण शक्ति के अंतिम प्रवास तक,
जलती-बुझती अंतिम आस तक,
वचनबद्धता के आखिरी छोर तक,
साथ निभाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं।
एस.के.पूनम।
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"तुम नहीं आई"
तुम नहीं आई क्या करूँ राम,
थक गई अँखियाँ निहारते राह,
होने वाली है सुबह से शाम,
तुम नहीं आई क्या करूँ राम।
चाँद निकला,बिखरी चाँदनी,
महकती खुशबू रात रानी की,
चहलक़दमी संग-संग करने की,
तुम नहीं आई क्या करूँ राम।
लिपटकर निशा के बाहों में ,
ढ़ूढता अक़्स तुम्हारी यादों में
ढलने लगी रात ढ़ूढते-ढ़ूढते,
तुम नहीं आई क्या करूँ राम।
एस.के.पूनम।
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"जो मैंने देखा"
उस प्रिय की मन-मोहनी छवि,
प्राणों मेंं बसी,रची स्मृति उसकी,
उर पुलकित उसकी चंचल नयनो से,
अब सोचूं क्या करूँ संचय संसार मेंं ।
उसकी अरुणोदय-सा,कनक -सा मुख,
जागृति ऐसी हुई जैसे कुछ स्वपनमय-सा,
अधर वैसी,जैसी मधुरशाला का प्याला,
स्वर ऐसी जैसे हो राग-स्वर का संगम।
लावण्यमयी,विस्मित उसकी काया-छाया,
अद्भुत,अद्वितीय,मोहित करती हर अभिनय,
उनकी सौंदर्य के मोह-पाश से हो अभिभूत,
उन्हें जो मैंने देखा कर दिया सर्वत्र समर्पित।
एस.के.पूनम।
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"प्यार की राह में"
रूसवाई में बीती कितनी रातें,कितने दिन,
कितनी बार आहत,लहुलुहान हुआ हृदय,
टिस उठती रही,छाए रहे मायुसी के बादल ,
प्यार की राह में खोया वजूद ढ़ूढता रहा ।
निंद्रा फैलाती रही अपनी बाँहें बार-बार,
अँखियाँ जागती रही रात-भर कई बार,
स्वप्निल हुई जागती अँखियाँ कई- बार,
प्यार की राह पर चलते हुए सोना भूला कई बार।
जिस पथ से थी गुजरने की बंदिशें,
राह आसान नहीं थी,दूर थी मंजिलें,
झंझावातों ने रोकी कई बार वो राहें,
सीखाअवरोधों से लड़ना,
प्यार की राह पर चलते हुए।
एस.के.पूनम।
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"तय कर न सके"
ज़िंदगी के चौराहे पर खड़ा होकर,
सोचूं सपनों को किस रंग से सजाऊँ,
पहले वो,पहले वो का द्वंद्व चलता रहा,
तय कर न सका और व़क्त गुज़रता गया ।
जीवन मेंं अनगिनत सपने देखा,
सब उलझनों से भरा-पड़ा था
एक सुलझता,दूसरा उलझ जाता,
कुछ तय कर न सका,व़क्त गुज़र गया ।
दिवा-रात्रि जिसका सपना देखा,
उद्वेलित होता रहा जिससे हृदय,
वही होगी मेरी प्रेयसी,तय कर न सका,
क्योंकि वो सपना था,हकीकत तो नहीं,
एस.के.पूनम
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"सारा समुंदर मेरा है"
समुंदर मेंं उठती लहरें दिल के ज़ज्बात हैं,
शाहिल से टकराती लहरें टूटते अरमान है,
समुंदर का कतरा-कतरा आँखों के आँसू हैं,
शांत समुंदर उनके लिए प्रणय का इजहार है।
एस.के.पूनम।
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