जब तेरी चूड़ियों की खनक , मेरे कानों में आती हैं ,
मेरी लिखीं हुई शायरी , तेरी संगीत बन जाती हैं |-
समझ मेरी मजबूरियां , पहनों मेरे नाम की चूड़ियां ,
मोहब्बत की है तो निभाऊंगा, क्यों देखती है दूरियां !-
वो- शादी के बाद मैं तुम्हें रोज फूलों के गजरे लाया करूंगा।
मैं- गजरे क्यूं?? चूड़ियां क्यूं नहीं??
वो- चूड़ियां क्यूं?? गजरे क्यूं नहीं??
मै- गजरे जल्दी मुरझा जाते हैं ना।
वो- तो चूड़ियां भी तो टूट जाती है
मैं- चूड़ियों के कांच तो संम्भाले जा सकते हैं लेकिन गजरे को
कितना भी संभालो, बिखर ही जाता है।-
बहुत शोर करतीं हैं पकड़ने पर कलाई
तेरी चूड़ियां किसी दिन मरवाएंगी मुझे-
उन्हें न जाने कौन सा रंग भाता है
बस यही सोचकर हर रंग की
चूड़ी पर दिल आ जाता है.-
बड़ा पागल सा इश्क़ है वो मेरा,,
भरे बाज़ार हाथों को थाम
चूड़ियां सज़ा दी उसने,,
ए ख़ुदा,
मैं एक दफ़ा और दिल हार ना कर बैठूं
यूं इकरार-ए-मोहब्बत पर उसके ।।-
सुर्ख़ लाल तेरी चूड़ियां,
और काजल जैसे रात काली...
कातिलाना तेरे कानों के झुमके,
और नियत मेरे लग रहे सवाली...!!-
वो अपने प्यार को कुछ इस कद्र जताने लगे है कि
मेहंदी भरी मेरी हाथो को वो चूड़ियों से सजाने लगे है ...-
मोहब्बत क्या नाकाम हुई
दोस्ती भी ख़तम हो गई
अजनेबी से हो गए है हम
अब केसे चूड़ी और पायल पहनाऊंगा मै....
अब केसे गले लगेंगे हम.....-