कौन ठगवा नगरिया लूटल हो चंदन काठ के बनल खटोला, ता पर दुलहिन सूतल हो उठो सखी री माँग संवारो, दुलहा मो से रूठल हो आये जमराजा पलंग चढ़ि बैठा, नैनन अँसुवा टूटल हो चार जने मिल खाट उठाइन, चहुँ दिसि धूँ-धूँ उठल हो कहत कबीर सुनो भाई साधो, जग से नाता छूटल हो
कौन "मूर्ख" कहता है की हमारे देश ने तरक्की नहीं की, या "हुकुमत" ने कुछ "महामारी" के लिए "तैयारी" नहीं की, पिछले साल हम "मोमबत्ती, दिया, टॉर्च" जला रहे थे, इस बार "चिताएं" जला रहे, इस से बड़ी क्या हो सकती है "तरक्की"..!!! :--स्तुति