~* चाँद वाला सिक्का *~
कँही तो कोई, कुछ खेलता हर रात..
ये तारे, वो जुगनू.. कुछ तो है बात..
चाँद वाला सिक्का हर रोज वो उछाले..
चित-पट देखकर, यूँ ही छोड़ दे सारी रात..
शायद वो खेल, कबड्डी हो बादलों का,
और तारे, दर्शक दृघा हो पूरे गगन का..
मैं भला नादान सा, देर से समझा इसे..
पढ़ता रहा चाँद को,सोचा खत है वो मेरे सनम का..
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