Self Portrait
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प्रत्येक लिखने का शौकीन व्यक्ति एक तख़ल्लुस रखता है यानी कि लेखक के तौर पर कोई उपनाम।
जैसे सूर्यकांत त्रिपाठी का उपनाम 'निराला' था।
आज आप सभी को अपने उपनाम/तख़ल्लुस रखने के पीछे का कारण बताना है।-
वास्तविकता के चरम बिंदु पर
आस्तित्वहीन, तुम्हारा चिंतन
कल्पनाओं में सजीव तुम
जहाँ तुम स्थिर, और मैं
प्रेम के समक्ष अवनमन
प्रतिबिंब प्रेरित करता है
आगे बढ़ती हूंँ
तुम्हें समेटने के लिए
ढूंढती हूँ अनुभूति गहन
जो तृप्त कर दे
अंतरात्मा को
मूक छवि धूमिल पाती हूँ
नितांत निशब्द, निशांत मैं
जैसे हो कोई दर्पण
स्तब्ध धरा पर ओस की बूंद सा
अनुराग समस्त तुमपर अर्पण....-
वैश्विक स्तर पर क्या माध्यम हो सकते हैं , जिनसे हिंदी के प्रचार प्रसार को गति मिल सके ?
आज हम अपने साहित्यप्रेमियों से इसी पर चर्चा करेंगे ।
( पूरी चर्चा के विषय को अनुशीर्षक में पढ़ें )
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हमारे देश में एक प्रचलन यह भी रहा है कि हम प्राचीन धार्मिक ग्रंथों पर तिलक-चंदन चढ़ाते हैं, उनकी पूजा करते हैं, पर उन्हें पढ़ते नहीं हैं। पढ़ते तो संस्कृति के नाम पर जो दुष्प्रचार किया जाता रहा है, वह सम्भव नहीं था।
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ऐसा नहीं है की मैं अंधेरे से डरा ही नहीं
हकीकत तो ये है माँ ने मेरा साथ छोडा़ ही नहीं
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आसमां और मैं
खिड़की से अपलक आसमां को निहारना मुझे बेहद पसंद है !
( संपूर्ण रचना के लिए कृपया अनुशीर्षक देखें )-
यथार्थ के क़रीब होकर भी समझ नहीं पा रहा हूं
क्या सच क्या झूठ है, लगता सब एक समान है।
दिव्यता धारण नहीं कर पा रहा हूं; जो कि मुझ में है
फ़िर है क्या; जो मैं समझ नहीं पा रहा हूं।-