तुम घाट बनारस बनो कभी, मैं गंगा जल बन जाऊंगी
फिर बार-बार हिलकोरें बन तेरे क़दमों को छू आऊंगी,
तुम काशी के शिव बनो कभी, मैं नंदी तेरी बन जाऊंगी
कोई कानों में कुछ मांगे तो उसे तुम तक मैं पहुंचाऊंगी,
तुम बनो बीएचयू गेट कभी, मैं लंका तेरी बन जाऊंगी
तुम पहलवान लस्सी बनना मैं पान गिलोरी होऊंगी,
तुम बनो वाटिका काशी की, मैं उनमें पुष्प बन जाऊंगी
तेरे प्रेम की सौंधी ख़ुशबू को अपने अंदर महकाऊंगी,
तुम शहर बनारस हो जाना, मैं इश्क़ तेरा बन जाऊंगी
तुम शाम कहो यदि कभी कहीं मैं सुबह-ए-बनारस लाऊंगी.!
-