तफ़्तीश रहने दी, सवाल कम पूछे, जवाबदारी नहीं की,
उसे शिकायत रही कि मैंने उससे गुफ़्तगू सारी नहीं की!-
फ़रागत में बैठकर, जो तुम........,
ज़ाम को ,अपने लबों से ,लगाया करते हो।
शिकायत है हमें, इन्हीं आदतों से, तुम्हारी......!
तुम! वो समय, हमसे, गुफ्तगू करने में,
क्यों ? नहीं, बीताया करते हो।।-
खयाल-ए-यार में बैठी हूँ
कोई मुझसे अभी गुफ़्तगू ना करे..!!
दिल को बेकरार कर के बैठी हूँ
कोई मुझसे अभी गुफ़्तगू ना करे...!!-
एक महकता खयाल बनकर
रूबरू कुछ इस तरह हो जाना तुम...!!
चिरागों की जब गुफ्तगू हो रात से..
संवार लें हर एहसासों को संग संग...!!-
न जाने कैसे तुम से, यह 'मोहब्बत' सी हो गयी
नहीं संभल रहा दिल, अब 'हो गयी तो हो गयी'
दिल ढूँढता है तुम्हें, हर दर-सहर-शब 'पल-पल'
लगता है मुझे अब तुम्हारी, 'आदत' भी हो गयी
तुम कुछ कर सको तो, कर के देख लो 'उपाय'
मेरी तो हर एक कोशिश, अब नाक़ाम हो गयी
जो हो जाये तुम से, बस कुछ पल की 'गुफ़्तगू'
मैं ख़ुशनुमा, ख़ुशनुमा सारी 'क़ायनात' हो गयी
जो खोया रहूँ ख़यालो में तुम्हारे, ऐसा लगे जैसे
बिन श्लोक-आयत-वाणी पढ़े, 'इबादत' हो गयी
सुनो ना! सच कह रहा हूँ मैं, मान भी जाओ ना
हाँ मुझे हो गयी! 'सच्ची-मुच्ची', सच में हो गयी
- साकेत गर्ग 'सागा'-
ज़ुस्तजू थी उस से कुछ गुफ़्तगू करने की,
वो भी मुझे अनसुना कर छोड़ चली है!
मेरी रूह भी अब मुहाज़िर हो गयी है!-
रुकी है ज़िन्दगी आज-कल या चल रही है,
बस इसी असमंजस मे ज़िन्दगी कट रही है...
खाली कुछ पलों में ज़िन्दगी से गुफ़्तगू कर रहे हैं,
कुछ ज़िन्दगी को हम कुछ ज़िन्दगी से हम मिल रहे हैं..
अधूरे और मुकम्मल सफर सब याद आ रहे हैं,
गिले-शिकवे हुए जो अपनों से वो मिटा रहे हैं...
ज़िन्दगी के कुछ पल खूबसूरत कुछ गुमशुम से थे,
कभी ज़िन्दगी मुझमे कभी हम ज़िन्दगी में कम से थे...
घर बैठे हैं यूँ ही बीती यादें सब दुहराए जा रहे हैं,
यूँ ही ज़िन्दगी से मुलाकातों में दिन बिताये जा रहे हैं...
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चाँद से अक्सर गुफ़्तगू हमारी होती है
कुछ अपनी, कुछ बातें तुम्हारी होती है.-
आख़री कोशिश कर के देखते हैं
फ़िर उसे अपना कर के देखते हैं
गुफ़्तगू का कोई तो रास्ता होता
आज उसे नाराज़ कर के देखते हैं ।।-