गुस्ताखी मेरी ज़रा माफ़ करना,
मेरे बदलने की अास में,
अपनी ज़िन्दगी मत बरबाद करना ||-
निगाहों ने जरा सी गुस्ताखी की है...
की ज़र्रे ज़र्रे ने तुझे देखने की साजिश की है...
तुझे देखू ना तो इस दिल को करार ना आये
तुम्हे देखनी की अब आदत सी हो गयी है...-
मत जा तू इतना करीब किसीके
चाहे वो यार हो या प्यार
साला यहां तो पानी तक अपना रंग बदलता है
वो तो फिर भी इंसान है मेरे यार-
हसीन गुस्ताखी, जो हमने की है,
तुमसे मोहब्बत करके.......
उसकी सज़ा मिल जाए, उम्र भर साथ तेरे रह के।।
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आज फिर इन हवाओं ने गुस्ताखी की है,
मिज़ाज मौसम का अफ़सुर्दा नज़र आता है !-
इसे ज़िद कहूँ..या गुस्ताखी,
अब सज़ा चुनूँ..या फिर माफ़ी।
बस रुख़्सत लूँ इस बस्ती से,
यहाँ वक़्त गुज़र गया काफी।।
एक रौशनी देदे ऐ मालिक,
ले चल मुझको अब दूर कहीं।
एहसास-अल्फ़ाज़ के जंगल से,
परे अगर कुछ बसा वहीँ।।
ना हसरत हो..न उम्मीदें।
बेवक़्त बदलती तक़दीरें।
बस मैं और तेरी रहमत हो,
बंधन ना कोई जंज़ीरें ।।-
गुस्ताखी मुआफ़,
मगर,
एक बात कहनी है खुदा !
कि तेरे इस जहां में,
बाकी सब ठीक,
मगर,
लड़ाई अधिकार पाने की कम,
अधिकार जमाने की जियादा है !-
गुस्ताख़ियाँ दिल लगाने की बस यूँ ही हो जाती है
अचानक जब उनकी कोई तस्वीर सामने आती है..-
मौसम की गुस्ताख़ी या मुझे कोई नशा छाया,
आज आँखों पे मेरी अजीब ख़ुमार आया है!
उड़ा के देख लिया मैंने हर बार वो परिन्दा ,
स्नेह के ख़ातिर ही जो गगन छोड़ आया है!
करके अच्छाई मैंने यूँ बहती हुई दरिया में,
ख़ुद को हमेशा आईने में ही तन्हा पाया है!
घूमते रह जाते है कुछ लोग यहाँ मर कर ,
महसूस हो अपना न ही ऐसा कोई साया है!
उठने लगे कितने सवाल अब जहन में मेरे,
क्या कभी कोईं मुसाफ़िर ज़बाब लाया है!
हम शय माँगते रहें उसी से सलामती का ,
जिसने बनके शाकाहारी माँस ही खाया है!
कर ले मुझपे सितम तू फ़िर से सितमगर ,
मन धूल समान और मिट्टी होती काया है!
कुचल देगा एक दिन तेरा अहम ही तुझे ,
समझते नही इंसान यहाँ सब कुछ तो माया है!!-