तुम्हारी कहानी-ए-इश्क़ कैसे पूरी होती ऐ क़ातिल
बददुआ किताब में दम घुटे गुलाब की थी।-
देखा जो इक किताब में रक्खा हुआ गुलाब,
दिल में तुम्हारी याद की ख़ुशबू बिखर गई...-
ख़ुश है तो गुलाब,
दुख में भी गुलाब।
तेरे आने में गुलाब,
फिर तेरे चले जाने में भी गुलाब।-
पन्ने पलटता रहा खुली किताब के मैं
एक गुलाब चाहिए बंद करने के लिए।-
ये फिजा़यें शादाब सी ,
इन हवाओं में खुशबू गुलाब सी ,
है खामोश लबों पर ,
मधुर गीत प्रेम का ,
और उस पर एहसास नुमा ,
अदृश्य उपस्थिती आप की ।
♥🌹 ♥-
खोल कर देख कोई किताब....
दो पन्नौ के बीच दबी मोहब्बत की अधूरी कहानी हूँ-
कमबख़्त सारे कांटों के साथ
कहता है गुलाब मुरझा जाए काँटे सदा रहे साथ-
महबूब के लिए तोड़ा है खिलता गुलाब,बेदर्द
बगीचा लगाया जा सकता था
खैर,
आशिक़ कमज़ोर ठहरे!-
एक बार भाव तो दे जान-ए-मन...
तूझे गुलाब नहीं
पूरा बगीचा लाकर दे दूँगा...
इतना भाव क्यों खाती है?? बता??...
खाना है तो मन भर के खा लेना,
तूझे पपीता लाकर दे दूँगा...-