नित नई राहें दिखाते।
ज्ञान की बातें सिखाते।
राह में जब हम गिरे तो।
युक्ति उठने की सुझाते।
शब्द मन के द्विग हैं होते।
अपनी आँखों से दिखाते।
ज्ञान अमृत को पिलाकर।
प्यास मन की वो बुझाते।
अपना अनुभव शिष्य को दे।
ज़िंदगी उसकी सजाते।
द्रोण जैसे गुरु धरापर।
इक धनुर्धर नित बनाते।
भाग्यशाली हूँ मिले दो।
एक गुरु तो सब ही पाते।-
आइए आज पढ़ते हैं जब पूर्व राष्ट्रपति और लेखक शंकर दयाल शर्मा ओमान की यात्रा पर गए, तो क्या विशेष हुआ?
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एक
तेरी शरण में
हैं सब सुख मिले
और कोई जगह
मुझे रास ना आया
जबसे
तूने हाथ थामा
मुझे पहचान है मिली
तेरे नाम से हरसू
मुख मुस्कान है आया-
बुरा वक़्त और कठिनाई एक महान गुरु है
और चुनौती हमारा सबसे बड़ा शुभचिंतक-
वो ना परे हैं किसी अनजान से
मनोभाव मुख से भोले हैं परे कम नहीं किसी महान से
वो हैं विश्वास की नईया और पतवार सत्कर्म का
अहंकारी भी निर्मल होते इतना प्रेम झलकता उनकी आँखों से
जिन्हें देखने भर को आँखों की नहीं ज़रूरत होती
बसते हैं वो जागृत चेतना में जो न मानो तो कम नहीं किसी पाषाण से
वो हर मुसकान में वास करते उनकी छवि बूँद बूँद अश्रु में
उनके आभास भर से जीवन सफल है बस सत्कर्म करो हर्सोल्लास से
मिलते हैं वो सभी से परीक्षा लेते हैं वो सभी के
हर जीव निर्जीव में हैं वो जो सफल होते वो कम नहीं किसी शिवांश से
वो अघोर विरक्त हैं और महाकाल उनका स्वरूप
बड़ा दिल है हर दशा में मुस्कुराते वो मलंग हैं क्यूँकि परे हैं अपने हर मान अपमान से-
गुरु+पूर्ण=माँ
सर्वप्रथम गुरु माँ..
माँ ने मुझे चलना सिखाया ..
निःस्वार्थ प्रेम करना सिखाया ..-
एक बार भयंकर जाड़े की रात लगभग 7 बजे आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी बोले "गंगा स्नान करने चलोगे?"
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मैं शिष्य आपका गुरुवर,
मुझको गुर सिखला दो...!
मैं बालक हूं आपका,
मुझको सही राह बतला दो...!!
जिस पर चल मैं जीवन में,
आगे बढ़ सकूं...!
पाकर आपका आशीष,
कुछ इतिहास गढ़ सकूं...!!
अक्षरों का ज्ञान कराकर,
पूरा पाठ पढ़ाया है...!
छोटे-छोटे इम्तिहान लेकर,
मुझे इस मुकाम तक पहुंचाया है...!!
मात-पिता के बाद गुरु तुम,
भगवान का रूप कहलाते हैं...!
गुरु तेरे चरणों में हम शत-शत शीश नवाते हैं...!!-
गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु
गुरु देवो महेश्वर: |
गुरु साक्षात परब्रह्म
तस्मै श्री गुरुवे नमः ||
|| अथ श्री ||
🙏🙏🙏-