आग लगे बड़ी लगे, लगे न सिगरेट🚬
लगने को बद्दुआ भी लगे, लगे न सिगरेट 🚬
ग़म और उम्र दोनों कम करती है..।
की गम और उम्र दोनों कम करती है..।।
तुम्हे लग जाए मेरी उम्र, पर लगे न सिगरेट 🚬
कि मेहबूब के हाथ में लगे न सिगरेट 🚬
कभी किसी की याद में लगे न सिगरेट 🚬
एक बार वो लग जाए तुम्हें,
किसी बेवफ़ा की भी आदत..।
एक बार वो लग जाए तुम्हें,
किसी बेवफ़ा की भी आदत..।।
तुम्हें किसी की मोहब्बत भी लग जाए,
पर लगे न सिगरेट 🚬 🙏🏼
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सुनो न...
साथ दे पाओगे तुम..?
यदि किसी ने दूरियों के बीज बो दिए
तो क्या उन दूरियो को कम कर पाओगे तुम..?
जान हो तुम मेरी
क्या सबके सामने इतना कह पाओगे तुम..?
बोल कर बयां नहीं कर पाते हम
क्या फिर भी खामोशियां सुन पाओगे तुम..?
हां माना बोर हो जाते हो
पर मेरे बगैर जिन्दगी जी पाओगे तुम..?
शक्ल सूरत पर मरने वाली इस दुनिया में
क्या दुनिया को मेरे होकर दिखा पाओगे तुम..?
❤️❤️❤️
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सुनो न...
हमने तौल दिया खुद को जो उसका दाम अच्छा लगा..
कुछ हुई यूं गिरफ़्तार इश्क़ में के बेवफ़ा इल्ज़ाम भी अच्छा लगा ..!
❤️❤️❤️-
सुनो न..
जब से रंगी है मेरी रूह तेरे इश्क़ में
शाम-ओ-सहर और निखरने लगी हूं..
बिखर गई थी लिपटकर जो तेरे आगो़श में
सुब्ह-दम जुल्फ़ों संग संवरने लगी हूं..
होठों की तिश्नगी को होंठो से लगाकर
अहद-ए-शबाब में उतरने लगी हूं..
लफ्ज़ों में बयां अब करूं भी तो क्या
तुमसे मोहब्बत बेशुमार मैं करने लगी हूं..
❤️❤️❤️-
सुनो न...
मैं ज़िंदगी को अपनी और ग़म-ए ख़्वार करके देखती हूं
आज की शाम ख़ुद को उनके नाम करके देखती हूं..
वो जो कहते हैं अज़ब मोहब्बत नहीं करते किसी से
बे-ग़ैरत उनसे ही इश्क़ ए इज़हार करके देखती हूं..
फक़त मिलने की आरज़ू है और कुछ भी नहीं
आशियाँ से आसमां तक का सफ़र करके देखती हूं..
ख्व़ाब ओ ख़्याल में बस तसव्वुर है उनका ही
क्यों न उन्हें अपना हमसफ़र करके देखती हूं..
❤️❤️❤️-
सुनो न..
हो इजाज़त इतनी ही गर आज़ मुझको
हमीं उनकी आंखों के कम–नसीब वो ख़्वाब चाहते हैं..
ख़ैर ओ ख़लिश इतनी सी है दिल में
चश्म-ओ-चिराग हम वो महताब चाहते हैं..
वफाओं से बसर कर शिद्दत–ए–मोहब्बत का सफ़र
मोहब्बत में दिल का इज़्तिराब चाहते हैं..
ऐ ख़ुदा और कितना करोगे जब्र हम पर
अब कुछ देर जो छाया दे वो अस्बाब चाहते हैं..
मत पूछो हमसे ओ मुर्शीद कि हम क्या चाहते हैं
मातम–ए–इश्क़ में हर बार अज़ाब ही अज़ाब चाहते हैं..
❤️❤️❤️-
सुनो न...
इक अरसे बाद आज दिल ए जज़्बात लिखती हूं..
लफ्ज़ों से जो बयां न हो कुछ ऐसे अल्फाज़ लिखती हूं..
तेरे इश्क़ में वो बनारस की घाट
और चांद संग हमारी पहली मुलाक़ात लिखती हूं..
मसला उलझा हुआ है इश्क़ में कुछ यूं
फिर भी कलम से हक़ीक़त कमाल लिखती हूं..
ना किस्से ना कहानी ना कोई ख़्वाब
बस इश्क़ में तुम्हें और तुम्हारा नाम लिखती हूं..
फिर भी लोग कहते हैं वाह वाह बहुत ख़ूब
क्या वाकई मैं बेमिसाल लिखती हूं..?
❤️❤️❤️-