आज यूं ही बैठे बैठे
मैने
इस परिसर के गलियारों में
उपन्यास के दो
काल्पनिक किरदारों को
अपनी कल्पना में जिया हैं
उस उपन्यास में लिखी
एक एक पंक्ति जैसे
इसकी हर एक जगह में हैं
उस बाग के हर एक फूल
के पास नायिका और
हर किताब में नायक को देखा हैं
उस तनिक से क्षण में
मैने उस पूरी उपन्यास को
दोबारा से पढ़ा हैं।— % &-
जब भावना और सौंदर्य के उपासक को बुद्धि और वास्तविकता की ठेस लगती है,
तब वह सहसा कटुता और व्यंग्य से उबल उठता है।
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आज मन कुछ घबरा रहा हैं ❤️गुनाहों का देवता ❤️ उपन्यास पढ़ के...
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बेकसूर कौन होता है
इस ज़माने में,
बस सबके गुनाह पता
नहीं चलते हैं..!!-
इक रिदायेतीरगी हैं और खाबेकायनात,
डूबते जाते हैं तारे,भीगती जाती हैं रात....!!!
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तुमसे मिलने का वो मंजर
जो मेरा ख्वाब अब भी है।
जो देनी थी तुम्हें मेरे पास
मेरी वो किताब अब भी है।
ये सच है कि गर हम मिलें
कहीं तो तुम होगे मौन मगर
तुम्हारे हर एक सवाल का
मेरे पास जवाब अब भी है।-
तुम किसी के हो गए, मैं किसी की हो गई
या खुदा! अब हमारा क्या होगा
मैं तो चलो सोख लूँगी दर्द, ज़ख्म, जुल्म
सोच रही हूँ के अब तुम्हारा क्या होगा
हवाओं ने भी बदल लिया रुख़ आँधियों में
इस सूखी पत्ती का अब सहारा क्या होगा
जान, सांस, खुशी, रौनक या फिर "सुधा"
मेरे देव तुमने मुझे फिर पुकारा क्या होगा
तुम्हें पाया भी नहीं और खो भी दिया
मुझसे ज़्यादा यार कोई हारा क्या होगा
तुम्हारी गोद में हो सर और सामने हो मौत
इससे बेहतर जन्नत का इशारा क्या होगा
इस जन्म कर लो जितने एहसान करने हैं
आगे की क्या खबर, दोबारा क्या होगा-