खयाल तुम्हारा मुझे दोनों में ही रहता है,
न मुझको दिन से शिकायत है और न शब से है
चले भी आओ और आ के खत्म कर दो इसे
ये न पूछो कि तुम्हारा इन्तजार कब से है |-
दिन का क्या है बीत जाने दो रात बाकी है,
तुमसे जो करनी है मुझे वो हर बात बाकी है,
यूँ तो ख्वाबों में मुझसे तुम रोज मिले हो पर
भूल पाएं न 'हम' जिसे वो मुलाक़ात बाकी है|-
लोग ये पूछते हैं मुझसे कि मैं क्यों कम हूँ,
मुझको तो और ज्यादा ख़राब होना था
तजुर्बे जिन्दगी ने हमको दिए ऐसे कि हम,
हुए वो कांटा कि जिसको गुलाब होना था
मुझे हैरत है देखकर तुम्हारी आँखों में,
ये जो पानी है इसे तो शराब होना था
हकीकत हो न सकोगे ये पता था फिर भी,
न जाने क्यूँ तुम्हें मेरा ही ख्वाब होना था |— % &-
बुझा सकेगा न कोई भी दरिया जिसको
ऐसी ही एक अनबुझी सी प्यास में मैं हूँ
मैं चाहता हूँ कि टूटे मगर ये टूटती नहीं
देखूँ तो जरा कैसी है जिस आस में मैं हूँ
मुझे खबर तो है कभी न खत्म होगी ये
न जाने फिर भी क्यूं तेरी तलाश में मैं हूँ
फिर भी, यूँ कट रहा है जिन्दगी का सफ़र
लगे कि जैसे हमेशा तुम्हारे साथ में मैं हूँ-
'दास्तां'
भाग -1
जरूरी नहीं कि पूरी हो जाये
संसार की हर एक कहानी,
ईश्वर की नजरों में शायद उनका
अधूरा रहना ही उनकी पूर्णता हो
सभी नदियां समंदर से नहीं मिलतीं
कुछ रास्ते में खुद ही गुम हो जातीं
सभी राहें मन्जिल नहीं पहुंचाती
कुछ बीच में ही हैं समाप्त हो जातीं
शायद उसी तरह एक कहानी
सभी के अंदर पनपती रहती है
जो कभी बाहर नहीं निकल पाती
उनके लिए जो 'दास्तां' है बन जाती
क्रमशः.......-
मुझे है याद हुए कितने अभी पांच ही बरस तो,
कोई दिल से उतर गया था,कोई दिल में उतर रहा था-
मुझे है रंज नहीं ये कि तुम नहीं मिले मुझको
मुझे ग़म है कि इस जहां में फिर क्यूं हम थे मिले-
मुझे रोज करते हो एक ही जख़्म अता
करो कुछ ऐसा कि मुझको हैरत हो
जब भी बिछड़ना मुझसे तो इस तरह
रौशनी खुद ही चराग़ों से जैसे रुख़सत हो-
एक ही जान में जिन्दा हैं कई जानें यहां
मैंने जाना है ये तुम्हारे रू-ब-रू होकर-
कटती नहीं ये शब तुम्हारे इंतजार में
ठहरो न आ भी जाओ अब दिल के दयार में
एक रोज मिल गयीं थीं तुमसे नजरें अचानक
तब से ही फिर रहा हूँ तुम्हारे ख़ुमार में
हालत ये है कि क्या करें औरों की बात हम
जब मैं ही नहीं रहा खुद के इख़्तियार में
इस चमन में छूटा है जब से आना तुम्हारा
खुशबुएं मर गयीं हैं गुल - ए - नौबहार में
महसूस न होगी मुझे नश्तर की चुभन भी
गर मिल रहा है तुमको सुकूँ दर्द- ए -यार में
फबता नहीं है बीच का ये रास्ता मुझे
आता है मजा मुझे सिर्फ आर पार में
मना सकोगे जश्न क्या कभी अपनी जीत का
या यूँ ही खुश रहोगे तुम गैरों की हार में
अपनी तरह के तुम यहाँ अकेले नहीं 'तुषार'
खसारे ही हुए सबको दिल के कारोबार में-