पूजनीय है, मिट्टी मेरे देश की
बनती इसी से प्रतिमा गणेश की-
ससि ललाट सुंदर सिर गंगा। नयन तीनि उपबीत भुजंगा॥
गरल कंठ उर नर सिर माला। असिव बेष सिवधाम कृपाला॥-
किसी भी कार्य का शुभारम्भ तो प्रभू की इच्छा से ही होता है
परन्तु अंत में सफलता तक पहुंचना हमारी दृढ इच्छा से होता है-
अद्भुत देखा एक परिवारा
सुरम्य बिल्कुल, अतिशय न्यारा
विषम परिस्थिति, वास हरमेसा
मूषक वाहन पै लंबोदर गनेशा
पिता त्रिलोचन, सर्व सम्पन्नऽ
रहते फिर भी, भिक्षुक आसन्नऽ
गले में धारे विषधर, श्री भुजंगभूषण
सर्व सुरक्षित मूषक, भले है सर्प दूषण?
महासेनजनक पुत्र कुमार षडानन
सीतापान पै घूमैं श्री पार्वतीनंदन-शिखिवाहन
स्वयं वलिवद्र पर विचरते पशुपति वृषभारूढ़
दारा; मात अम्बिका-गौरी, लिए सिंह, अति दारुण
नमन हे अम्बिकानाथ, गंगाधर, महाकाल, शिवाप्रिय, अनीश्वर
तारो जग को, हे शर्व, शूलपाणी, भक्तवत्सल, त्रिलोकेश, महेश्वर-
एकदंत, लम्बोदर,तुम कहलाए,
गौरीसुत, वक्रतुंड तुम सबको भाए,
चंचल चितवन, चतुर बुद्धि के दाता,
मोदक भोग है तुमको मन भाता
मूषक वाहन तुमको सुहाता,
रिद्धि सिद्धि देते निज भक्तन को,
बुद्धि विवेक पावे, जो सेवत तुमको,
चरण पखारूं मैं शिवनन्दन को,
हाथ जोड़ खड़ी उनके वंदन को,
करूं बखान कैसे मैं गणनायक को,
मंगलदेवा मंगल नित हैं करते,
शरणागत के दुख पल में हैं हरते,
अष्टविनायक अष्टसिद्धि हैं देते,
तात शुभ लाभ के,शुभफल हरपल हैं देते,
सूपकर्ण, श्वेत वर्ण रूप मन को अति भावे,
करूं जतन क्या, जो कृपा मिल जावे,
सुखकर्ता के स्वामी सुख करते रहना,
विघ्नहर्ता तुम विघ्न सारे हरते रहना,
न कुछ ज्यादा मांगू मैं प्रभु तुमसे,
हर साल यूं ही बस आते तुम रहना।।
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