यारों के यार रखते सबका बहुत ख्याल हो
जुबां पर न किसी के लिए कभी ज़वाल हो
शफ्फाक दिल में न बैरभाव जैसा बवाल हो
आला इंसान आप जहां सच में बेमिसाल हो-
तो फिर आ जाओ घूमने अदब का शहर
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तेरी फ़ितरत में वफा नहीं है
मेरी फ़ितरत में ज़फा नहीं है
मुझे तुझसे नफरत इतनी है
जिसकी कोई इंतहा नहीं है-
टूटे दिल का ईलाज वक्त रहते ज़रूरी है
वरना लोग मर जाते हैं हादसों के बाद-
ख़्वाबों मे बसते हो मेरे,
तुम्हें ही तसव्वुर में लाते हैं हम,
सोचो कितने खास हो तुम,
तुम्हेँ सोच के मुस्कुराते है हम-
आँखों में कातिलाना मस्ती जुबां से अमृत टपकाता है,
ए सितमगर दिलों से खेलने का हुनर कहाँ से लाता है
तहरीर-ए-वफ़ा से तेरी किताब हर पन्ना रहता भरा है,
हाय! ज़ालिम हर हसींमहजबीं से प्यार तुझे हो जाता है-
दूर से ही तकते हैं पास आते नहीं,
ये सितारें भी मेरी तरह सोते नहीं
इन्सां की खुदगर्ज़ी में ये ऐसे मिटे,
के भोर पंछी हमें अब जगाते नही
आशिको से खफा है गुलिस्ता भी,
काँटों के जैसे ये साथ निभाते नहीं
खुद बह के करते हैं सबको सैराब,
ये झरनें किसी को भी रुलाते नहीं
कुदरत ही देती है मज़िलों का पता,
पहाड़ किसी को राह भटकाते नहीं
पत्थर खाकर भी खामोश हैं खड़े,
सायादार पेड़ अहसान जताते नहीं
बहुत बदल गई है वैदेही ये दुनियां
यहाँ पे इंसान अब नज़र आते नहीं-
तोहमतें गर लगेंगी तो फिर तेरी ख़ता पे बात जाएगी,
मुकरना ना इश्क़ से वगरना मेरी अना पे बात जाएगी
बड़ा ही आसान सलीका है ये ख़्वाबों में मिलने का,
गर हकीकत में मिले तो हर एक ज़ुबा पे बात जाएगी
रहती नहीं है दरपेश इश्क मे गुंजाईश चारागरी की,
अगरचे दवा ही ना मिले तो फिर दुवा पे बात जाएगी
अहसान है तेरी यादों का,के अब आती नहीं नींद हमें
अँधेरे मे ना गुज़री रात तो फिर शमा पे बात जाएंगी
हम वाक़िफ़ है वैदेही शम्स-ओ-कमर के कमाल से,
रात में गर ना हो दीदार तो फिर सुब्हा पे बात जाएगी-
Yq मित्रों, भाई बहनों से विनम्र अनुरोध है के वो सभी टेस्टीमोनियल का कमेन्ट ऑफ कर दें, क्योंकि, गंदे लोग जो हमारी पोस्ट पर कमेंट नहीं कर पाते वो अब टेस्टी मोनियल पर जाकर लोगों के कमेंट पर जाकर कमेंट में गंदी बातें लिख रहें है, वो अस्थिरता पैदा कर हमारा मनोबल तोड़ना चाहते है, पर वो विकृत मानसिकता के लोग हमें डरा नहीं पाएंगे
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दिल के जख्मों से उभरना पड़ा,
खुद की नज़रों से उतरना पड़ा
शौक-ए-सुखन से मुब्तिला है वो,
नज़्म-ए-ग़म हमें लिखना पड़ा
तन्हा रास्ते और ख़्याल तुम्हारा,
राह-ए-हिज्र से हमें गुज़रना पड़ा
उस से मिलके ही ज़िंदा थे हम,
अफ़सोस उस से बिछड़ना पड़ा
ज़हर तो बे-असर ही रहा वैदेही
आब-ए-बक़ा पीकर मरना पड़ा-