चोरों की बस्ती में रहते हैं
दिल की तिजोरी खुली छोड़ रखी है
न किसी की दोस्ती, न किसी का प्यार
न कोई पूँजी जोड़ रखी है
आयेगा ग़र कोई चोरी के इरादे से
तो कोई ताला न तोड़ पायेगा
देखेगा जब इस दिल का ख़ालीपन
ख़ुद का प्यार भी छोड़ जायेगा-
बंद हों आँखें तो सोता हुआ न समझना
खुली हों आँखें तो जागता हुआ न समझना-
ख्वाबों से भरी इस शाम में
एक तारा टूटा हुआ दिखता है
मांगते हैं सब तो
किस्मत हम भी आजमा लेते हैं
बंद मुट्ठी में समटी सी लकीरों को
खुली हवा देते हैं
खोजते हैं खुद को तो
एक नई पनाह देते हैं
लाचार इन किस्मत के सितारों को
नया आसमान देते हैं
रुकी हुई थकी हुई
खोई सी जिंदगी को
एक नई उड़ान देते हैं-
खुली छतों के दीये कब के बुझ गये होते,
कोई तो है जो इन हवाओ के पर कुतर देता है!-
कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी मुझे
माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी-
हवा कुछ कह रही थी,
घटाएं सुरमई थी..!
तेरी जुल्फ़ें खुली थी,
शरारत लाज़िमी थी.!
शिक़ायत क्या करूँ मैं,
तू उलझी सी कहीं थी.!
हुई नासाज़ तुम तो,
कोई हसरत नहीं थी.!
अकेलापन था इतना,
शिकायत भी कई थी.!
तेरा दीदार हो बस,
मेरी ख़्वाहिश यही थी.!
स्वतंत्र अब क्या कहूँ मैं?
तमन्ना रो रही थी..!
सिद्धार्थ मिश्र-
खुली हुई जुल्फों से न निकला करो बाज़ार में ए आदम की बेटी .....
खुली ज़ुल्फ़ों पर इंसान से ज़्यादा जिन्न आशिक़ हो जाया करते हैं-
दरवाजा बंद था। उस पर एक नोट चिपका था - "खिड़की खुली है ;)"।
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शर्त लगी थी रात से सारी रात जागने की,
फिर हुआ यूँ की रात थक कर सो गई,-