Aman Singhai   (Aman Singhai)
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Joined 21 April 2020


Joined 21 April 2020
24 MAY 2021 AT 1:54

वह बोली
क्यों ना एक मुलाकात हो जाए
दो प्याली के साथ चार बातें हो जाएं

मैं बोला
दुआ करें कि
चाय बनने तक सारी बातें हो जाएं
क्यूंकि
चाय के बाद हम किसी के ना हो पाए

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18 MAY 2021 AT 20:31

?
वही कुल्हड़ और वही चाय

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18 MAY 2021 AT 19:08

इतिहास की किताब सी हो तुम
हर दिन नया अध्याय
हर दिन नई जंग

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8 MAY 2021 AT 16:42

एक मंजिल की आस में
मोह द्वेष में लिप्त होकर
परमात्मा की तलाश है

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6 MAY 2021 AT 19:39

अक्सर online दिखाई देते है

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5 MAY 2021 AT 4:22

..........

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4 MAY 2021 AT 3:22

रात अब कट नहीं रही
घड़ी भी कहां चल रही
बात अब बढ़ नहीं रही
लगता है अब वो वो नहीं रही

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4 MAY 2021 AT 3:09

एक साथ की आस में घूमता रहा
बेवफा मे वफा तलाशता रहा
अंजाम क्या होगा पता भी रहा
फिर भी रिश्तो को निभाता रहा

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23 SEP 2020 AT 10:00

जरा सा सब्र रखना था
मैं तारे तोड़ लाता था
समुद्र मंथन हुआ कभी तो
अमृत भर के लाता था
ज़रूरत लगी यदि तो ह्रदय चीर
तुम्हारी तस्वीर भी दिखाता था
सुरक्षित रखने की खातिर
गोवर्धन को भी उठाता था
तुम्हारी मुस्कान की खातिर
मधुर बंसी भी बजाता था
जरा सा सब्र रखना था
मैं सब कुछ ठीक करके आता था

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23 SEP 2020 AT 0:51

कम ना समझो

इस मायावी जाल को

जाता हर रास्ता यहां

पाताललोक के द्वार को

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