जरा सा सब्र रखना था
मैं तारे तोड़ लाता था
समुद्र मंथन हुआ कभी तो
अमृत भर के लाता था
ज़रूरत लगी यदि तो ह्रदय चीर
तुम्हारी तस्वीर भी दिखाता था
सुरक्षित रखने की खातिर
गोवर्धन को भी उठाता था
तुम्हारी मुस्कान की खातिर
मधुर बंसी भी बजाता था
जरा सा सब्र रखना था
मैं सब कुछ ठीक करके आता था
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