और कितना खुदगर्ज बनाएगा ए खुदा मुझे
उनके बिना भी जिन्दा हूं क्या इतना काफी नहीं।
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वाह रे ! खुदगर्ज जमाना, आज मुझको ही खुदगर्ज बता रहा है।
जो अपनी खुदगर्जी के खातिर ,सदियों से जमाने को ही मिटा रहा है।
जो बस अपने भोजन के लिये, हम निर्दोष जीवों को सदा से अपना भोजन बना रहा है।
खुद कातिल होकर, आज मुझे ही कातिल बता रहा है।-
यहाँ हर कोई प्यासा दरियाँ हैं
सब एक दुसरे से नफ़रत में
जी रहे है खुद को खुदा
समझते है और दुसरो पर
अन्याय करते हैं
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खुदगर्ज ज़माना भावनाओं से खेल जाते हैं,
कर दिखावा अपनेपन का जज़्बातों से खेल जाते हैं।
सर्प की मानसिकता वाले अपने प्रियजन का शिकार करते हैं,
बांधकर पट्टी विश्वास की सीधा सीने पर वार करते हैं।-
इतना ख़ुदग़र्ज़ भी न बन ऐ जमाने।
के जो मजबूर हो,तू चला है उसी को मिटाने।-
खुदगर्ज बन कर,संसाधन तो जुटा लोगे
मगर इंसानियत से हाथ धो बैठोगे-
बेचारा साँप मछली को बचा रहा है
औऱ तुमको वो मुजरिम नज़र आ रहा है
लानत है तुम पर 😏😏😏
(मीडिया वालों से कुछ नहीं सीखा ???)
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अपनी अना मे यह फ़ना तुम्हें करेगा...
खुदगर्ज़ है ज़माना किसी की परवाह क्या करेगा!!-