रोज़ी संबरीया   (रोज़ी संबरीया)
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Joined 7 May 2020


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Joined 7 May 2020

अरमानों का दरिया शायरी से थे बहते,
थक गए हैं जज्बात भी सहते - सहते,
सन्नाटा सा बहुत है बाहर और भीतर शोर
विदा लेते है लेखनी अब अलविदा हैं कहते।






ख़्याल रखिए सभी और यूं ही मुस्कराते, लिखते और खुश रहीए।

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ਇੱਕ ਵੇਹਲਾ ਸੀ....... ਮੇਰੇ ਹੱਥ ਵੀ ਚੂੜਾ ਸੀ,
ਸੁਰਖ਼ ਬੁਲ੍ਹੀਆਂ ਤੇ ਹਾਸਿਆਂ ਦਾ ਰੰਗ ਗੂੜ੍ਹਾ ਸੀ,








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Feels proud.....when I look at my shadow,
Darkness was aside world is death blow,
Moment I felt you hapiness is bestowed,
Don't have time as World is a workflow,
All surrows are just like a peep show,
Intellectual personality suits me every show,
I am me as I taught mountains to outgrow.

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जख्म खाकर भी मुस्कुरा रहे हैं हम,
तेरे दर्द के सजदे में झुके हुए हैं हम,
खामोश नज़र ए बयां से अंजान वो,
और हर पल यही समझाते रहे हम।



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हालातों से गिले शिकवे कैसे जब होंठों से रूठ गई हर बात,
दिलबर तेरी बेरुखियों से मानो तो रही हमारे संग कायनात,
जाने कौन देश तुम जा बसे हर कोशिश कर हारी इलाहीरात,
मेरे डर को आ के मिटा दो रुठी हर रात को बना दो अम्रात।



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अर्पण कर दिया मोहब्बत का सागर,
फिर भी परखा जाएगा, उम्मीद ना थी,
स्याह सर्द रातों में वह दर्द भरा ,
मंज़र यू जगाएगा, उम्मीद ना थी,
तेरे जहा में क्यों प्यार नहीं तेरा,
मरहम ही जख्म दे जाएगा, उम्मीद ना थी,
रात सपनों भरी चांदनी की हैं ओढ़नी,
रूठ जाएगी मुझसे रात, उम्मीद ना थी।



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तेरी‌ भी हद हैं ए मालिक,
शीशा का मुकद्दर दे,
...और...
दिल मोम का‌ दे ..
.....मुझे...
वक्त के हाथों,
पत्थर थमा दिया।




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गुजरे हुए वक्त की तरह तू भी लम्हा बन के रह गया,
सांस में बसर तेरे नाम का दिल तन्हा बनके रह गया,
तेरे प्यार .....हर खौफ से ..वाकिफ करवा गया मुझे,
तमन्नाओं के शहर में नाम ए वफ़ा गुमनाम रह गया।






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मुख़ातिब थे जो .....स्याह रातों को,
आज वो मुखालफत को उतारू हैं।
तेरा बदला बदला सा अंदाज मुर्शिद,
मेरे मुस्तक़बिल पे .........भारू हैं।

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तसव्वर में सुकून तराशा हिमाकत देखीए,
जे़र ए दाम ए गम से लिपटी हिकायत देखीए,

चुभन फूलों से मिली सामान ए फ़रागत देखीए,
चहक रही जिंदगी फिरभी बारान ए रहमत देखीए,

अपनों ने ख़लवत ए बसर ज़रा मशक्कत देखिए,
खयालो ए मुंतज़िर थे हम खुदा इनायत देखिए,

सिफर हो रही जिंदगी में थोड़ी फुर्सत दीजिए,
झूठ झुका ना पाया सच की फितरत देखिए,

ख़िज़र ए जहां से दूर रहना है अब तुम्हें ' रोज़ी ',
इतनी चुप्पी ठीक नहीं ज़रा खुशी ए प्रवर्तक देखिए।

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