दुनियां में दुनियां सा कुछ बाक़ी नहीं है,
भटके हुए हैं सब कोई हादी नहीं है ।
दिल को सुकून आता था जिन बातों से,
दिल अब उन बातों पर राज़ी नहीं है।
फ़क़त ख़्वाबों तक मेहदूद है सब यहां,
जहां में किसी का कोई साक़ी नहीं है ।
होता है इलाज हर ज़ख़्म का मगर,
कुछ ग़मों की कोई शाफ़ी नहीं है ।
गिरते हुए को और गिरा देते हैं ,
अब कोई किसी का राक़ी नहीं है ।-
हम एहसासों को पिरो कर हर आयत बनाते हैं!!
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कुछ लोगों को फ़ुर्सतें बहुत हैं ,
कुछ हैं ख़ुद में ही मशगूल यहां।
कहने को सारा जहां अपना है,
हक़ीक़त में है हर कोई तन्हा यहां।-
किसी की एक जैसी शख्सियत कहां,
पल भर में बदलतें हैं लोग रंग यहां।।-
मुझे भाते नहीं अब यह नज़ारें जहां के ,,
मेरी आंखों को काफ़ी है एक चेहरा उसका।-
मुझे शौक हैं गम - ए- हयात के बहुत ,
मुझे मेरी खुशी का रास्ता नहीं मालूम ।
मैं जो चल दी हूं न जाने किस राह पर,
खुदा जाने मुझे उसकी मंज़िल नहीं मालूम।
हस्ते हस्ते गुज़र जाता है सारा दिन मगर,
मैं किस घड़ी रो दूं मुझे खुदको नहीं मालूम।
यूं मुरझाई मुरझाई सी मेरी सूरत तो न थी,
मेरे दिल की तकलीफ़ तुझको भी नहीं मालूम।
मेरी ख्वाहिशें मुझ तक ही मेहदूद रह गईं ,
और एक तमन्ना जो किसी को भी नहीं मालूम।-
मेरी सरहदे तुम तक ही हैं मेहदुद ,,
एक तुमसे है मुकम्मल मेरा सारा जहां ।-
मैंने संभाल के रखा है उसको मेरी गज़ल की किताब में,
हां यह सच है मगर उसने कभी मुझे गुलाब नहीं दिया ।-
और तुम जैसा सुकून मुझे .........
किसी और शख्स में नहीं मिल सकता ।-