सुना है, मुहब्बत खुदगर्ज होती है और....
कहते है,जो सच्ची है, वो अधूरी रहती है!!-
मर्जी से जीने की बस ख्वाहिश की थी मैंने...
और वो कहते हैं कि खुदगर्ज बन गये हो तुम...
धड़कता था कभी दोनों का दिल एक दूजे के लिए
अब काँपता है सिर्फ मेरा दिल उसके लिए
मेरी नाकाम मोहब्बत मुझे वापस कर दी उसने
कुछ यूं मेरे हाथ मेरी लाश थमा दी उसने
ज़िद की कुछ यूं इंतेंहा कर दी उसने
ठुकराकर मेरी मोहब्बत मुझे ज़िंदा लाश कर दी उसने
अब ना गम समझ आता है ना खुशी
कुछ यूं मेरी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी उसने
जाने किस लहर के हिस्से में होगी अस्थियाँ हमारी
जाने नदी का कौन सा प्रवाह मुझे किनारा देगा
जो लोग हमे भूल जाते हैं,
हम उन्हें कभी भूल नहीं पाते है...!-
अगर सब कुछ लिख दूँ तो तेरे को खुद की हकीकत से इल्म करा जायेगी ,
और वह हकीकत लिखु हि क्यों जो तेरे को तेरे से दूर ले जायेगी........-
चुप्पी साध ली हैं हम ने,
ऐसा नहीं की सवाल नहीं,
बस अब तेरे लौट आने का इंतजार नहीं......-
अक्सर लोग मुहब्बत में खुदगर्ज हो जाते है !
मैं खुदगर्ज़ी से ही मुहब्बत कर बैठी !!-
तुमको क्या मालूम ऐ रूप
जाने कितना ख़ुदग़र्ज़ हूँ मैं
मौका परस्ती फितरत तो नहीं
सफर के अपने ही दर्द हूँ मैं
किस्मत खराब वज़ह ये नहीं
मंजिल के लिए बेफ़र्ज़ हूँ मैं
जो असर न करे ज़िन्दगी भर भी
समझ लो ऐसे दवा-ए-मर्ज़ हूँ मैं-
खुदगर्ज़ी देखी नही गयी उसकी..
सहारे को ख़ुद के जिसने, कइयों के बिस्तर सेंक दिये !!-
देती हूं सबक, तोड़ आदम कि गफलते,मैं वक्त हूं,
"मुर्शीद"मुझ जैसा खुदगर्ज,इस जहां में कहां!!-
चोट को कुरेदने से मिलता नहीं मर्ज़ है,
हर्ज़ है इस बात से वो कहती तू ख़ुदग़र्ज़ है-