मुझे तुमसे मोहब्बत है पता है क्या
अभी भी दिल किसी दिल पर फ़िदा है क्या
ज़रा सोचो तुम्हारे बिन कहाँ जाता
किसी दिल में तिरे जैसी वफ़ा है क्या
हिफ़ाज़त भी करूँगा मैं कहा तुमसे
बगावत से कोई अपना हुआ है क्या
अभी कह दो कहोगे जो जुदा होकर
जुदाई से बड़ी कोई सज़ा है क्या
मिलेंगे दिल हमारे भी मोहब्बत से
मगर दिल में तुम्हारे भी अना है क्या
वही 'आरिफ़' वही सब कुछ इशारों में
इशारा भी निगाहों से ख़फ़ा है क्या
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