जब भी तुम मेरी याद की खिड़की खटखटाते हो मैं भी अपने मेहमान के लिए दरवाज़ा खोल देती हूं
ये यादें भी मेहमान हीं तो होती है कुछ देर के लिए आती है बातें करती है फ़िर चली जाती है कुछ दिनों बाद फ़िर आएंगी कोई भूलीबिसरी याद का तोहफ़ा साथ लाएगी कभी मीठा कभी खट्टा खिलाएगी फिर ग़ायब हो जाएगी बीच बीच में सब्ज़ी में नींबू के बीज की तरह कुछ कड़वा भी खिला जाएगी यादें है सभी तरह का स्वाद रखती है सिर्फ़ इम्तिहानों में ज़वाब ज़रा मुश्किल से लाती है.....😅😅😅 Nirmala
यादों का एक काँच का टुकड़ा छटक गया खट्टी-मीठी इमली की शाख पे अटक गया दिल की दिलचस्पी देख जरा सा मटक गया गिरा हकीकत की भूमि पर चटक गया वर्तमान में लाकर मुझको पटक गया।
एक चोट सी लगी,आह भर दिल से बोला, माफ़ करो कुछ देर को मैं भटक गया।
हाथो में हाथ लेकर हमारा जब वो चलते है मंजिल तो करीब ही होती है पर दूर तक जाने की जिद्द हम उन्से करते है उलटी-सिधी हरकते और नाजायज जिद्द हम करते है और जब डांटते या समझाते है वो तब........ बडी शिद्दत से उनको हम सुनते है खट्टे मिठे झगडे़ यूं तो हम रोज उन से करते है पर जब बात उनकी नाराजगी तक जाए तो उन्की हर बात को हां और ना को ना हम करते है
शर्त नहीं है कोई भी पर चाय के साथ जगा देना इतना काफी है महंगे कपड़े तुम ले लेना हमको फ्लूट दिला देना इतना काफी है सुंदर तो तुम लगो ना लगो हमको सुन्दर जतला देना इतना काफी है नहीं दबाना सिर मेरा तुम तुम ही ना दुखवा देना इतना काफी है सात जनम का रिस्क किसलिए पहिले इक अजमा लेना इतना काफी है तोहफे की तो कमी नहीं है इगो छोड़ कर अा जाना इतना काफी है
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