ऐ चरागर न कुछ तुझमें कमी है
मेरा ये दर्द ही तो मौसमी है
उसी को देखकर आती हैं सांँसें
उसी को देखकर सांँसें थमी हैं
यकीं है मुझको अपनी बंदगी पर
भले मुंसिफ़ से उसकी पैरवी है
बहुत कुछ ज़िंदगी ने छीन ली पर
मेरे हिस्से में हांँ कुछ शायरी है
है वह राधिका सबसे विलग पर
मेरी भी प्रीत मधुरिम बांँसुरी है-
Learner|Artist
•Mother tongue -Sarcasm
•Orophile
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घड़ी की टिक टिक करती
सुई की धार से कटकर
गिरते रही वक्त की खुरचन
रात दिन में और दिन रात में
विलय होने की एक अंतहीन प्रक्रिया में
नज़र हो गई प्रस्तर
स्मृति के बोझ से लहुलुहान हो गया हृदय
कट गया एक युग
बस प्रतीक्षा की घड़ियांँ नहीं कट पाईं...
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तेरी आंँखों से चुराया है मतला ग़ज़ल का
मेरी नज़रों से तू अपने नज़र की झलक देख ले
ये जो पूछती हो बारहा मेरी मोहब्बत का दायरा
तो उठा पलकें इत्मीनान से ये फलक देख ले
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खोलती हूंँ जब कभी किताबें पुरानी
महक उठती सौंधी सी बीती कहानी
सफहों की खिड़की से एहसास करती
गुजरे हुए दौर की धुंँधली निशानी
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सुविधा के सामान बहुत हैं
फिर भी मन वीरान बहुत है
सुकूं रूह की चाहत है पर
आंँखों में अरमान बहुत हैं
चेहरों को पढ़ना ना सीखा
दिल भी ना नादान बहुत है
खामोशी से कर ली यारी
कहने के नुकसान बहुत हैं
खा़लिस गुल गिनती भर के हैं
शहरों में गुलदान बहुत हैं-
खोल न पाया हृदय कभी
मन का जो अनुभाग
डसता रहता एकाकी में
बन कर विषधर नाग।
याद तुम्हारी ऐसी है
जैसे दहके आग
अश्रु से धुलते नहीं
मानस पट के दाग-
मौसम की पहली बारिश
मिट्टी की खुशबू भर लाई
बूंदों के स्नेहिल स्पर्शन से
खिल गई अंकुर की तरुणाई
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जिसमें जज़्बात की मिठास है
भावों के सुमनों से सज्जित
मौन मुखर मधुमास है
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शहर छोड़ो तो रौशनी छूट जाती है
गांँव छोड़ो तो सादगी छूट जाती है
चमक आंँखों को सुकून देती है
सरलता हृदय को करती है तृप्त
दोनों के बीच चलती रेल में बैठा पात्र
कभी तृषित देखता अंतर्मन
कभी देखता तृषित गात्र।-