Shilpa Sony:)   (अनगढ़ शिल्प©)
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Joined 17 September 2019


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1 JUN AT 22:05

सो रहे सुख चैन
जागती है रात
भर गए दो नैन
जागती है रात
किसकी सुधियांँ छल गईं
दीप बनकर जल गईं
है अंँधेरा हृदय तल पर
दागती है रात
धुंँधले कुछ चित्र
छूटे हुए कुछ मित्र
ठहर गए युग पलक पर
भागती है रात
भाव प्रस्तर बन गए
निमिष नश्तर बन गए
कट न पाती शीघ्र केवल
काटती है रात।

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31 MAY AT 13:22

घटना जिसका घटना तय है
घट जाती उसकी भी शक्ति
घट–घट के वासी को सौंप सब
करते जब हम सच्ची भक्ति

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31 MAY AT 13:15

कुछ भी शाश्वत नहीं

अंत ही शुरुआत है

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30 MAY AT 22:04

चांँद की जो रौशनी
पलकों की डिबिया में
भर के धर के भूले,
शाखों के आंँगन में
रात के आंँचल में
कर शृंगार बन हरसिंगार फूले


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29 MAY AT 10:28

एक शहर जिससे कुछ तो सरोकार है
एक शहर जो अनदेखा प्यार है
पलके जिसकी शामों का मंज़र बुनती हैं
यादें भोर की ताजी कलियांँ चुनती हैं

खबरें आती जब वहांँ के समाचार पर
नज़र उठ ही जाती सहसा अख़बार पर
रफ़्तार जिसकी धड़कनों में धड़कती है
खामोशी हौले से सांँसों में उतरती है

नाम लेते ही जैसे दिल में राहत होती है
और जाने की मन में अक्सर चाहत होती है
एक शहर बातें जिसकी फ़ोन पर कहते हो
एक शहर जिसके आशियाने में तुम रहते हो

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28 MAY AT 15:28

पर बात टालते रह गए
वक्त निकालेंगे कभी
वक्त निकालते रह गए
लब ख़ामोश रहे
जज़्बात दफ़न रह गए दिल में
उम्र भर रह गया मलाल
दर्द सालते रह गए

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27 MAY AT 23:07

जकड़ गई मुस्कान
भूतकाल के पाश में
फिसल गया वर्तमान

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26 MAY AT 15:18


पर्वत के शिखरों से बहते
घाटी में रुपहले निर्झर नद
सरसिज से सजे सर पर सजते
कविता के सुकोमल सुंदर पद

हांँ इन्हीं नदी के तीरों में
भावों की कलम डुबोने दो
मुझको पल भर को खोने दो...

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26 MAY AT 15:00

सजगता, सहजता की कुंजी है

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25 MAY AT 11:33

नीरव उर के सघन विपिन ने
नुपुर की रुनझुन को जाना
विचरे तुम एकाकी मन में
होठों ने गुनगुन को जाना

सावन के अभयस्त नयन दो
खिले आस की रविप्रभा से
सुरधनु बन घुल गए श्वासों में
पलकों ने फागुन को जाना

निशीथ भरे जीवन वीणा के
बिंधित तारों में प्राण भरे
अरुणिमा बन मिले तो हिय ने
आसावरी के धुन को जाना

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