अक़्सर बीते फ़साने है लगते सुहाने से❣❣❣
वक़्त था एक न किया, कदर हमारी मोहोब्बत मेँ,,,
पूछूँगी कैफ़ियत मैं, फ़रमाइश करा आज बेगाने ने...
अक़्सर बीते फ़साने है लगते सुहाने से❣❣❣
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खामोश रहकर कितने राज दबा जाते हो !
तिश्नगी गुफ्तगू की एक पल में बढ़ा जाते हो !
कि जायजा लेते हो मेरे सब्र का हमदम,
या अना के पहलू में तलब छुपा जाते हो !
कैफियत पूछने की तुमको फुर्सत ही नहीं,
बस साथ रहकर एक हमदर्दी जता जाते हो !
ऐसे शनासा होकर भी भला क्या मिला मुझे,
रोज खुदपरस्ती का शबीह दिखा जाते हो !
राह जुदा करने की जब कभी कोशिश की मैंने,
मैं हमनफस हूँ तुम्हारा क्यों बता जाते हो !-
पूछेंगे एक दिन तेरी कैफियत भी
पहले खुद के हाल से तो रूबरू हो लें ।
जो बेहाल है अभी
तब तक जब तक तेरे ना हो लें।-
फुर्सत कहाँ मिलती उसे अब फ़क़त कैफियत भी पूछने की
जिसे पहले बिना मुखातिब हुए नींद भी नहीं आती थी ।।
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कैफ़ियत मत पूछिए हमउम्र के जवानों से,
डिस्को में हीं 'है सब ' हम मैख़ाने नहीं जाते।
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न जाने कभी कभी
बेवजह ही क़रीब सी रहती है,
अल्लाह ही जाने क्यों बेबसी सी रहती है❣❣❣-
बेहद किया इंतिज़ार अब तू आए तो क़रार आए
आए तो कुछ यूँ आए के तू आए तो बहार आए
ये क़ैफ़ियत-ए-फ़िराक़-ए-यार मत पूछ सनम
तेरे इंतिज़ार में आँसू मेरी आँख में बार बार आए
तड़प ऐसी के दिल को न चैन-ओ-क़रार आए,सो
थक हार कर हम तेरे दर पर हो के बे-क़रार आए
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-सन्तोष दौनेरिया
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एसी कभी ना थी, जो अब कैफियत है ।
पसंदीदा चीज़े भी देने लगी अज़ीयत है ।
वही सहर वही दोपहर फिर शाम और शब,
इस मामूल से भी हो गई अब बोरियत है ।
चाहता हूँ कोई तो मेरा हाल पुछे, फिर क्यूं ?
कोई पुछता है तो केहता हूँ, सब खैरीयत है ।
इलाज नही है मेरे मरज़ का किसी के पास,
दवा मांगो तो यार दे कर जाते नसीहत है ।
ये बात भी शोएब, शायद एक अफवाह है,
कि ग़ज़लें करती टूटे बशर की मरम्मत है ।
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मशरूफियत इतनी हो गई है कि खुद की कैफियत नहीं रहती,
फतह पाने की होड़ में खुद की ख़ैर-ओ-आफ़ियत नहीं रहती!!
-Bharti Gupta ✍️-