मेरे किरदार वो क्या पहचानेंगे,
कई किरदार से मैं खुद भी वाक़िफ नहीं।।।-
2023 ℓєт'ѕ ρяαу тσ αℓℓαн уα αℓℓàн ιѕ ѕααℓ кσ ѕвкα мυкàм... read more
इस भागदौड़ में जैसे भूल गई हूँ,
जैसे कभी मैंने भी बचपन जिया हो कभी।।
बस यूं ही बैठे हुए याद आ गया वो बचपन,
मैंने भी कभी वो खेल खेले थे,
जो आज कभी कभी ही दिखाई पड़ते हैं।।
बस कुछ यूँ कह लो मैं भी तो वो बच्चा थी,
जब वो कहते हैं अंग्रेजी में आई स्पाई मैं तो आज भी आइस पाइस से ही जानती हूंँ उसे।।
और न जाने कितने खेल तो जैसे तब्दील हो गए उस बेजुबान मोबाइल से,
आज किसको फुर्सत है मिलती,
और कौन है खेलता वो खेल।।।
वो दिन जब मैं याद करती हूँ ,
घर के कुछ काम भी खेल से ही कर लिया करते थे, हम तीन भाई -बहन।।।
खाली कापियों के पन्नों से न जाने क्या क्या,
बनाया करते थे,
और अलमारी के कपड़े तय कर ,
उनके बदले ये नाव ,जहाज खरीदा करते थे।।।
सबसे उम्दा खेल तो जानो , मैंने खेला है आपका पता नहीं, और उसका नाम होता था,चल टीचर टीचर खेलते हैं।।।
और हम खेल में लग जाते और सबके नाम पर इक ही अटैनडैंस लगवाया करता और इक ही सारे किरदार बचपन में निभाया करता था।।।
आज लगता है, वो किरदार तो बस न समझी से निभाए गए खूबसूरत अदाकार थे और आज समझ होकर भी खूबसूरत नहीं कहीं।।।
न जाने क्या क्या बताऊं,
बस याद आया वो बचपन,वो ख्याल,
वो हर वक्त की चहल पहल न जाने कब सब बदल गया।।।
और सबसे बड़ा खेल घर घर तो हमने भी खेला है वो बचपन।।।-
कैसे लिखें जातें हैं एहसास,
कैसे बयां किए जाते हैं जज़्बात,
तुमने तो बना लीं अपने इर्द-गिर्द ,
जज़्बातों की बंदिशें,
किससे कहूं ये मन का गुबार,
बस भूल गई हूं बयां करना,
शायद बंदिशें टूटे तो खुलकर बताऊं,
मैंने क्या खोया क्या पाया ,
पाया तो सिर्फ बंदिशों का जाल।।।-
मुझमें वो न जाने क्या क्या ढूंढते हैं,
या मैं ही बावरी टटोलती हूँ,
यूँ हो जाती तो ज्यों न रहती बात,
तो यूँ ही सही मन को बहलाती हूँ,
न जाने क्या तितर बितर सी रहती हूँ,
मुझमें खुद से टटोलें मुझे बस बहकती हूँ,
न जाने क्या ढूंढते हैं मुझमें,
या मैं ही बावरी टटोलती हूँ,
किताबों के पन्नों सा हर हर्फ़ बटोरती हूँ,
यूँ पिरोती हूँ फ़िर बिखेरती हूंँ,
फिर समेटते समेटते झरना बन बरसती हूँ,
न जाने क्या क्या ढूंढते हैं मुझमें वो,
कभी,या मैं ही बावरी टटोलती हूँ।।।-
बहुत शांत हो गई है मन से,
कोई दुविधा नहीं,
चहचहाहट मानो अचरज सी हो जैसे ,
हर दिन इक रात चुप्पी सी हो जैसे,
वो जो थी सो थी कभी,
वो आज ज्यों कि त्यों है यहीं,
वो खिलखिलाती हुई शाम हो गई है,
वो गीली मिट्टी सी सौंधी महक सी वो शीतल हो गई है,
वो बरसता सावन वैसे ही पतझड़ की खुशबू हो गई है,
वो कुछ यूं हो गई है,
मानो कोई चाह नहीं कोई परिचय नहीं,
वो गुनगुनाता जहान हो गई है।।।-
क्या खूब है,
वो आसमान सा होना,
वो गरजता भी है,
वो बरसता भी है,
क्या झूमता है देखो,
दो छोर हो मानो,
मगर इक आखिर भी नहीं,
और क्या कहने वहीं,
आसमान सा मन ही तो है,
इक मन कहने को,काश,
यूं हो जाए इक बार ही सही,
हर बार ही सही,
मचलता तो है बेबस खुदगर्ज,
वो रूठता तो है बचपन सा है,
और फ़िर खुद ही दो किनारे मिलते हैं,
फ़िर उसी चाह में काश यूं हो जाए ,
क्या खूब है न।।।-
एहसास,इक एसी बला है,
जनाब अच्छों की नींद उड़ा देता है,
चाहे वो एहसास चोरी करके हो,
या फ़िर इक बीते हुए खुश मिजाज़ से पल का,
एहसास।।।-
मुशक्कत वक्त के साथ की जाए,
तो लाजवाब कहलाती है,
बेवक्त मुशक्कत बेसबब बन जाती हैं।।।-
जिसने इक बार में सब वक्फ कर दिया हो तो,
क्या अगली दफा मुंतजिर हुआ जा सकता है भला।।।-