Santosh Doneria   (सन्तोष दौनेरिया)
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Joined 7 October 2020


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12 APR AT 15:35

एक मुद्दत से दबा दबा जज़्बात का दरिया, आज बहना चाहता है 
कुछ तुम कहो कुछ हम,  दिल बहुत कुछ सुनना कहना चाहता है 
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-सन्तोष दौनेरिया 

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22 FEB AT 9:52

गिले-शिकवे भुलाकर घर लौट आते हैं
हर ख़लिश मिटाकर घर लौट आते हैं
इन परिंदों से सीखो लौटने का हुनर
सात समंदर पार जाकर घर लौट आते हैं
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-सन्तोष दौनेरिया

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20 FEB AT 10:44

चलो कि अहम् की गिरहें हम दोनों खोलें आज
लम्हों के धागे में छोटी छोटी ख़ुशियाँ जोड़ें आज
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-सन्तोष दौनेरिया

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13 FEB AT 14:49

पहले प्यार की रंगीनियाँ लुभातीं हैं बहुत
फिर प्यार में मजबूरियाँ रुलातीं हैं बहुत

बड़े दिलचस्प होते हैं मोहब्बतों के क़िस्से
मगर ये कहानियाँ दिल दुखातीं हैं बहुत
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-सन्तोष दौनेरिया

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12 FEB AT 12:22


दे दे कोई एक प्यार भरी झप्पी सर्दियों के मौसम में
मात दे गर्मियों की गर्मी को यही,सर्दियों के मौसम में

ऐ काश कोई उम्मीद गले लगे, कोई आस जग उठ्ठे
दिन दिसंबर के हो जाएँ फ़रवरी सर्दियों के मौसम में
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-सन्तोष दौनेरिया

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10 FEB AT 15:08

दर्दे इश्क़ कितनों ने झेले हैं, जानता है दिल
बड़ा ही नादाँ है, के मोहब्बत माँगता है दिल

पलकों के दरीचों से चलते हैं नज़रों के तीर
क़ातिल आँखों में फिर भी झाँकता है दिल
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-सन्तोष दौनेरिया

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10 FEB AT 12:20

अगर जो मिले ग़ुलाब तोहफ़े में,
तुम उसे सँभाल कर रखना

गया वक़्त ये तुम्हें याद दिलाएगा
किताबों में इसे कहीं डाल कर रखना

चंद लम्हों की क़ुर्बत है
चंद लम्हों की रिफ़ाक़त है
चंद लम्हों की बात है,
चंद लम्हों का साथ है
चंद लम्हों के बाद
ये लम्हा भी बिखर जाएगा
आज जो है साथ साथ
क्या जाने वो कल किधर जाएगा
सर्द मौसमों में जमा न हो बर्फ़ यादों पर,
वक़्त को तुम हमेशा उबाल कर रखना
(शेष अनुशीर्षक में)

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7 FEB AT 13:58

ख़ामोशियों के ज़हर रग-ए-जाँ में उतर न जाएँ कहीं
इश्क़ में अनदेखियाँ तबाह मुझे कर न जाएँ कहीं
हमेशा सँभाल कर रखना तुम, ये तोहफ़ा गुलाब का
हवा के एक झोंकें में पंखुड़ियाँ बिखर न जाएँ कहीं
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-सन्तोष दौनेरिया

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6 FEB AT 11:40

थोड़ा और वक़्त गुज़रने दो, मंज़र सुहाने नज़र आएँगे
साथ बहो बहती नदिया के, रौशन किनारे मिल जाएँगे

राह-ए-सफ़र में देखना कि ऐसे मुक़ाम भी आएँगे
जाँ अपने रास्ता भटकाएँगे, तो फिर ग़ैर पार लगाएँगे
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-सन्तोष दौनेरिया


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1 FEB AT 14:46

मा'नी गुलकंद के रख दिए बदल के उसने
शेर जब कहे इश्क़ की ग़ज़ल के उसने

चेहरा- ए- बे- मिसाल बे- नक़ाब कर
तोड़ दिए ग़ुरूर सारे, ताज-महल के उसने

मदहोशी ही मदहोशी,मदहोश सरा आलम है
जाम-ए-इश्क़ पी लिया जब, मचल के उसने

वीराँ ज़िंदगी का सफ़र, थी अँधेरी रहगुज़र
रास्ते रौशन कर दिए,साथ मेरे चल के उसने
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-सन्तोष दौनेरिया

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