गिले-शिकवे भुलाकर घर लौट आते हैं हर ख़लिश मिटाकर घर लौट आते हैं इन परिंदों से सीखो लौटने का हुनर सात समंदर पार जाकर घर लौट आते हैं ------------- -सन्तोष दौनेरिया
अगर जो मिले ग़ुलाब तोहफ़े में, तुम उसे सँभाल कर रखना
गया वक़्त ये तुम्हें याद दिलाएगा किताबों में इसे कहीं डाल कर रखना
चंद लम्हों की क़ुर्बत है चंद लम्हों की रिफ़ाक़त है चंद लम्हों की बात है, चंद लम्हों का साथ है चंद लम्हों के बाद ये लम्हा भी बिखर जाएगा आज जो है साथ साथ क्या जाने वो कल किधर जाएगा सर्द मौसमों में जमा न हो बर्फ़ यादों पर, वक़्त को तुम हमेशा उबाल कर रखना (शेष अनुशीर्षक में)
ख़ामोशियों के ज़हर रग-ए-जाँ में उतर न जाएँ कहीं इश्क़ में अनदेखियाँ तबाह मुझे कर न जाएँ कहीं हमेशा सँभाल कर रखना तुम, ये तोहफ़ा गुलाब का हवा के एक झोंकें में पंखुड़ियाँ बिखर न जाएँ कहीं ----------------- -सन्तोष दौनेरिया