Santosh Doneria   (सन्तोष दौनेरिया)
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Joined 7 October 2020


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Joined 7 October 2020
5 MAR AT 14:50

दिल की फ़ितरत है कि इसे तो बस ख़्वाब सजाना है
और ख़्वाब की हक़ीक़त यही है कि उसे टूट जाना है

ख़्वाबों के आँगन में ताबीरों के चाँद अक्सर उतरते नहीं
मगर दिल मानता कहाँ, मुश्किल इसे बड़ा समझाना है

दिल में न ख़्वाब रखना और न चाहतें बे-हिसाब रखना
खिलता है ख़्वाब जो रात में, दिन चढ़े उसे मुरझाना है
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-सन्तोष दौनेरिया

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18 NOV 2024 AT 9:51

कुशलता एक दिन में नहीं आती,
सतत अभ्यास ज़रूरी है

चींटी पहाड़ चढ़ सकती है,
निरंतर प्रयास ज़रूरी है
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सन्तोष दौनेरिया

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16 NOV 2024 AT 22:30

जो सारे सितारे जगमगा जाएँ, गगन की अमावस दूर हो
उम्मीद की पूनम रात आए और मन की अमावस दूर हो

ख़िज़ाँ की आँधियों से मुरझा रहे हैं सपनों के फूल
बहारों के मौसम लौट आएँ के चमन की अमावस दूर हो
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-सन्तोष दौनेरिया

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16 NOV 2024 AT 21:57

बुरी शय है मगर हो ही जाती है ये मोहब्बत
कितनी ही बुरी क्यों न हो

क्या करिए, छोड़ना आसान नहीं होता
आदत कितनी ही बुरी क्यों न हो

दीवानों से पूछो उलफ़त में आप बीती,
जन्नत सी कहेंगे वो
फिर हालत कितनी ही बुरी क्यों न हो
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-सन्तोष दौनेरिया

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16 NOV 2024 AT 21:07

अँधेरे तो घेरे हैं आदमी को उजालों में
अँधेरों के लिए रात, बिन बात ही बदनाम है
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-सन्तोष दौनेरिया

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16 NOV 2024 AT 20:53

यादों का भारी बोझ उठाए अपने काँधों पर
जाने क्यों, रात है कि जागती रहती है रात भर

शायद कुछ तो बात है जो सालती रहती है रात भर
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- सन्तोष दौनेरिया

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5 AUG 2024 AT 11:32

ज़िंदगी में सोचोते हैं जो, मुख़्तलिफ़ उससे बात होती है
जब फूलों की चाह रखते हैं, काँटों से मुलाक़ात होती है
इस ज़िंदगी में कहाँ कुछ मिलता है अपनी मर्ज़ी से
दिल उजाले चाहता है तो साथ हमारे काली रात होती है
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-सन्तोष दौनेरिया

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15 JUL 2024 AT 21:48

रात भर साथ रहते हैं, साथ सोते हैं
सुबह को बिछड़ जाते हैं

ग़म न करना ख़्वाबों का,
ख़्वाब अक्सर आँखों से झड़ जाते हैं

धागा धागा पिरो कर
रात भर बुनते रहो तुम कितने ही सपने
मगर आँखों के खुलते ही
ये सपनों के धागे उधड़ जाते हैं
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-सन्तोष दौनेरिया

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14 JUL 2024 AT 9:26

काली रात बीत चुकी है
पीछे मुड़कर देखो मत
नई उड़ानें आगे है
तुम पंख अभी समेटो मत
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-सन्तोष दौनेरिया

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7 JUL 2024 AT 12:43

मख़मली फूलों सी तुम, बहारों सा तेरा साथ है
चिराग़ों सी रौशन ज़िंदगी, जब हाथों में तेरा हाथ है

गुल ही नहीं बाग़बाँ भी बे-क़रार है तेरे इंतिंज़ार में
आ भी जा के फूल मुरझा रहे हैं मौसम-ए-बहार में
मेरे दिल की गलियों में, ढूँढती हैं धड़कनें तुम को
एक तुम नहीं तो लगता है, धड़कन जैसे अनाथ है
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-सन्तोष दौनेरिया

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