सपनों की दुनिया को जीतने के लिए,
काश, हमने वास्तविकता को थोड़ा पहचान लिया होता.
आसमान को छूने के अरमान लिए,
काश, हमने ज़मीन की अहमियत को पहचान लिया होता.
चूर हो गए हम इतने जीत का जश्न मनाने के लिए,
काश, हमने हार को भी कभी ध्यान से पढ़ लिया होता.
जीते थे शान से कभी जिस हंसी को मुख पे लिए,
काश, हमने आज सपनों के बोझ तले उसे आज दफ़न ना किया होता.
अरमान सजाया था जिस जीवन को शान से जीने के लिए,
उन्ही अधूरे अरमान के साथ आज मृत्युशैया पर लेटे यह सोच रहे थे ,
काश , हमने यह जीवन थोड़ा जी लिया होता।-
जब आपका प्यार आपके साथ होता है
कितना खूबसूरत वो अहसास होता है
हजारों की भीड़ में वो सिर्फ आपको देखे
उस लम्हे की याद का वक्त भी खास होता हैं
हाथों में हाथ लेकर कसमें वादों को साथ
जिसमे अपनापन और अटूट विश्वास होता है
चाहत होती है हर किसी को ऐसा प्यार मिले
पर किस्मत में लिखा सिर्फ काश होता है।।
-
काश मुझे पता होता की तुम अब इतने दगाबाज हो जाओगे
एक बार चले जाने के बाद फिर वापस कभी लौटकर नहीं आओगे
जब तुम्हें प्यार ही नहीं था मुझसे तो तुम इतने करीब मेरे आये ही क्यूं
इस कदर मुझे यूं पल पल मारकर तुम खुश कैसे रह पाओगे।।
-
काश के भूका न सोए फिर कोई बच्चा यहाँ...
ज़िंदगी आसान इतनी हो अगर क्या बात हो !
दफ़्न होती हो जहाँ नफ़रत, अदावत, दुश्मनी...
एक क़ब्रिस्तान ऐसा हो अगर क्या बात हो !!
کاش کہ بھوکا نہ سوئے پھر کوئی بچّہ یہاں
زندگی آسان اتنی ہو اگر کیا بات ہو
دفن ہوتی ہو جہاں نفرت، عداوت، دشمنی
ایک قبرستان ایسا ہو اگر کیا بات ہو !!-
काश.. हम अपने मन मुताविक
यह "ज़िन्दगी" छाँट लेते,
किसी से सांसें माँग लेते
किसी से यह "उम्र" बाँट लेते..,
काश.. !-
काश मरने के बाद भी यूँ उम्दा रहूँ,
लोगों के दिलों में ता-उम्र ज़िंदा रहूँ..!-
मुझे तन्हाई ढूंढती है इस घने अंधेरे में
के डर है के कहीं खो ना जाऊँ,
साँस चुभती है के इस ज़िन्दगी में
मुमक़िन नहीं के तेरा हो जाऊँ,
तेरे ख़्वाब भरी नींद से उठा देते हैं
कम्बख़्त.., इतनी हिम्मत भी नहीं
के सो जाऊँ..!-
"क़भी आख़िरी दिन अग़र हो मेरा
जनाज़ा रुख़सत इसकदर हो मेरा,
काश मुहब्बत में जफर हो जाऊँ
औऱ उसके कंधे पे आख़िरी सफ़र हो मेरा"-
"हृदय में सोज़- कुंठा- वेदना
प्रतिपल पश्चाताप करूँ रोज़ मैं,
वो शायद मात्र ईक संयोग था
रहा ताउम्र जिसके वियोग में,
...यह कहाँ आ गया अबोध मैं
बस इक ही शख्श की खोज़ में
कहीं छोड़ आया सभी लोग मैं...."-
कितनी मुहब्बत है काश यह बताता मैं तूझे
होती जो तू पास तो यह आँसु दिखाता मैं तुझे,
कितना तन्हा हूँ ख़्वाबों के इस जंगल में
तू होती तो दूर कहीं ले उड़ जाता मैं तुझे,
जो तू रूठती कूक सुनाता
पंख फ़ैलाकर मनाता मैं तुझे,
सतरंगी सपनें मैं भी दिखाता
नाचता मोर् सा रिझाता मैं तुझे,
काश चुग पाता मैं बिरह के यह बिखरे दाने
या ख़ुद कैद हो जाता औऱ पिंजरा बनाता मैं तुझे..!
-