मैं गुल हूं तुम गुलशन हो .....
अपनी बहारों में शामिल मुझे भी कर लो,
मैं मुंह मांगी कीमत दूंगी
तुम एक बार मुस्कुरा तो दो......!
तुमसे दूर होना नहीं चाहते ,
वरना इस शहर में बहारें तमाम है .......
अकेला है पर गुलदस्ते में फूल है,
तुमसे दिल्लगी क्या मेरी भूल है।
हजारों कलियां फूल बनने की कोशिश करती है रोज मुरझाती हैं ........!
फिर भी खिलती तमाम है .......
क्यों गुमान है प्यारे तुझे अपने हुस्न पर,
तुझे हुस्न वाला बनाया भी तो हमने हैं,
हम पर भी नजरे करम कर दो ।
जानती हूं इस जहां में तेरे आशिक तमाम है.......
मानती हूं कि दिल काला है मेरा ,
पर गोरा तू भी तो नहीं है ,
दिल के दाम खरीदेंगे तुझे
वरना बाजार में हुस्न बिकते तमाम है..........
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