वो सब समेट लेती है खुद में,
गम के, खुशी के, शिकायत के,
रंग सारे समाते हैं उसमें;
लोगों की तरह रंग नहीं बदलती,
एक सी ही रहती है-
स्याह काली।
और फिर भी लोग पूछते हैं-
ऐसा क्या खास है उसमें?
मोहब्बत क्यूँ है एक काली कमीज़ से?-
सुनो जिसका करती है
धरती बेसब्री से इंतज़ार
जो झमाझम बरस के
बुझायेगा धरती की प्यास
तुम हो वो.... घनघोर 'काला' बादल
और जो बरसेगा नहीं
ना इकट्ठी कर पाया
पानी की बूंदें भी
उड़ेगा निर्भार,
निर्भयता और निश्चिंतता
के पंख लगाकर
प्रेम के अंतहीन आकाश में सदा के लिए...
वो मैं हूं.... अड़ियल उदासीन "सफेद" बादल !!!
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लिबास काला हो या सफेद उसका जादू चलता है ,
दिल के आंगन में उसके नाम का कमल खिलता है।-
लगा दो कोई आज़ादी को काला टीका
सुना है इस पर किसी की बुरी नजर है-
दिक्कत होती है यहाँ लोगों को हमारे काले रंग से
भूल जाते हैं कि चाँद रात के अँधेरे में ही दिल लुभाता है।-
कुछ रातों के सवेरे नहीं होते
आँखों के वरना काले घेरे नहीं होते
शब्दों को पसंद है शब्दों से खेलना
ख़याल ये तेरे मेरे नहीं होते-
रंगों में भी अब काला रंग मशहूर हो गया है,
जब से मेरा ख़ुदा, मुझसे दूर, बहुत दूर हो गया है।-
मैं गुल हूं तुम गुलशन हो .....
अपनी बहारों में शामिल मुझे भी कर लो,
मैं मुंह मांगी कीमत दूंगी
तुम एक बार मुस्कुरा तो दो......!
तुमसे दूर होना नहीं चाहते ,
वरना इस शहर में बहारें तमाम है .......
अकेला है पर गुलदस्ते में फूल है,
तुमसे दिल्लगी क्या मेरी भूल है।
हजारों कलियां फूल बनने की कोशिश करती है रोज मुरझाती हैं ........!
फिर भी खिलती तमाम है .......
क्यों गुमान है प्यारे तुझे अपने हुस्न पर,
तुझे हुस्न वाला बनाया भी तो हमने हैं,
हम पर भी नजरे करम कर दो ।
जानती हूं इस जहां में तेरे आशिक तमाम है.......
मानती हूं कि दिल काला है मेरा ,
पर गोरा तू भी तो नहीं है ,
दिल के दाम खरीदेंगे तुझे
वरना बाजार में हुस्न बिकते तमाम है..........-