ये तो एक ऐसि रात है जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती !
ये थमना नहीं चाहती, या कोई थमने नहीं दे रहा है...
ये अपने आगोश में न जाने किस किस को बहा ले जाएगी, अपने-अपनो को दुर कर देगी...
न जाने कैसा अंधेरा छाया है, कयामत है या खुदा का कहर...
ऐसी तनहाइयां न कभी देखी है और नाहीं सुनी!
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नवरात्रि के सातवें दिन "अभि" माँ कालरात्रि की पूजा की जाती हैं।
माता कालरात्रि नकारात्मक ऊर्जाओं का विनाश करने वाली हैं।
इस दिन साधक का मन सहर 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है।
इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है।
देवी कालरात्रि को काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृत्यू-रुद्राणी,
चामुंडा, चंडी व दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है।
देवी के इस रूप में सभी राक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच और नकारात्मक
ऊर्जा का नाश होता है, जो उनके आगमन से पलायन करते हैं।
इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है व सिर के बाल बिखरे हुए रहते हैं।
गले में विद्युत दिप्तमान माला है तथा इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्मांड सदृश गोल दिखते हैं।
सुनो भक्तों! इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं।
माँ की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं।
माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है किंतु ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं।
माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली और ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं।
माँ कालरात्रि के स्वरूप-विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित
करके मनुष्य को एकनिष्ठ भाव से उपासना करनी चाहिए।
"माँ कालरात्रि" शुभंकारी देवी हैं इनकी उपासना
से होने वाले शुभों की गणना नहीं की जा सकती।
(बाकी अनुशीर्षक में)-
सप्तमं कालरात्रीति
अयिदुर्गामयिसप्तम्स्वरुपिणीदैत्यभक्षतिसर्वसिद्धिधारिते।
स्मरणचित् आवाह्नं अहम्पूजितं सहस्रारचक्रम् ध्यानकृते।।-
काली विकराली भयंकर शोहे कालरात्रि मईया
शोहे कालरात्रि मईया शुभंकरी अंधकार छईया
गदर्भ-सवार अति-विकराल शुभ-शुभ हे मईया
आनंद-विभोर भाव-पुलकित मुख देखि मईया
दैत्यों का नाश है करती लहूओं का ग्रास करती
भक्तजन को करती है उल्लास कालरात्रि मईया
रक्त पिपासी जैसी क्रुद्ध राक्षस अविनाशी जैसी
और क्या-क्या मैं रुप बताऊँ मईया कैसी-कैसी
सब सिद्धियों की ये जननी पूर्णाहुत करने वाली
भक्तजो माँगे सब मिल जाए कोई आवेन खाली-
मुख विकराली महाकाली कालरात्रि स्वरुप
पाप नाशनी भय को ह्रासनी आई माता रुप
तिमिर रुपी मुखमंडली काया अति विहंगम
सहस्त्र काल सकल विश्व का जैसे है संगम
कोरोना मायावी दैत्य को नष्ट करो हे माता
विधि-विधान से माता करवाऊंगी जगराता-
कालरात्रि असुरविनाशक
रक्तबीज की तुम संहारक,
विद्युत विराल सम अंग तुम्हारा
अंधकार सम रंग तुम्हारा,
तुम त्रिनेत्र धारी दुर्गा
तुम चंद्रमुकुट धारी दुर्गा,
तुम धुमोरना तुम रौद्री
तुम शुभंकारी हो कालरात्रि,
गदर्भ सवारी तुम्हरी है
ज्वालामई श्वासें तुम्हरी है,
चार भुजाएँ तुम्हरी माता
धारण करती खड्ग व कांटा,
अभय और वर मुद्रा धरती
भक्तों को भयमुक्त हो करती,
काले घने तिमिर सम केश
अत्यंत भयंकर तुम्हरा भेष,
माँ हर भय से तुम मुक्त करो
शुभता के फल से तृप्त करो,
नवदुर्गा की सप्तम शक्ति
मैं बारंबार नमन करती।।-
न मॊक्षस्याकांक्षा भवविभववांछाऽपि च न मॆ,
न विज्ञानापॆक्षा शशिमुखि सुखॆच्छाऽपि न पुनः ।
अतस्त्वां संयाचॆ जननि जननं यातु मम वै,
मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपतः ।।
मुख में चंद्रमा की शोभा धारण करने वाली माँ!
मुझे मोक्ष की इच्छा नहीं है,
संसार के वैभव की अभिलाषा नहीं है ;
न विज्ञान की अपेक्षा है ; न सुख की आकांक्षा ;
अतः तुमसे मेरी यही याचना है कि मेरा जन्म
‘मृडाणी , रूद्राणी , शिव, शिव , भवानी ’
इन नामों का जाप करते हुए बीते।-
शक्ति की आराधना करो मनुज मन लाय,
माता कष्ट हरे सभी व्याकुल मन हर्षाय..!
शैलपुत्री माता का प्रथम दिवस कर ध्यान,
सब बाधाएं दूर हों माँ हैं कृपानिधान..!
ब्रह्मचारिणी माँ करें सृष्टि पर उपकार,
ब्रह्मचर्य को साधती कोटि कोटि आभार..!
तन मन धन सब वार दो चन्द्रघण्टा का रूप,
विद्या भक्ति ज्ञानमय माँ का यही स्वरूप..!
कुष्मांडा भरती सदा अन्न और धन का पात्र,
इन्ही कृपामय देवी का है चौथा नवरात्र..!
क्रमशः
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सप्तम स्वरूप माँ कालरात्रि नमन🙏🙏💐💐💐🙏🙏
अपने मानसिक कमजोर घर के चिराग के लिए भी सुंदर पूर्ण सक्षम लड़की ही खोजी जाती है,
गरीब पिता की प्यारी लाडो, ना जाने क्यों उसकी मजबूरियां बन ऐसे वर को ब्याही जाती है।
वही बेटी बहू रूप में अपनी हर छोटी सी कमी के लिए भी ना जाने कितने ताने सहे जाती है।
साँवला रंग, छोटा कद है तो क्या, कमाऊ पूत लड़को की कोई उम्र नहीं देखी जाती,बात ये समझाई जाती है,
गोरी सुंदर, शिक्षित, कामकाजी है बहू फिर भी, अक़्सर उस पर पति व घर की लापरवाही की मुहर लगाई जाती है।
बेटियाँ को बनाए सक्षम सदा,पिता को लाचारी के कष्ट से दिलाने निजात मैं शक्ति पुंज बनकर ही आऊँगी।
बेटी को भी मिले बेटे की तरह सदा समानता का अधिकार और सम्मान,जगाने भाव जन जन में, मैं कालरात्रि बनकर आऊँगी।-
" माँ कालरात्रि "
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता,
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
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जय काली जय कल्याणी,
खड्ग खप्पर रखनेवाली,
सृष्टि अवलम्बन धारी,
जग की शक्ति है नारी,
नारी पे आफत आई भारी,
बलात्कार शोषण की मारी,
दुष्ट विनाशन हेतु हे माता!
तुमने रूप भयंकर धारा,
आज दुष्ट का नाश कर माता!
मातृशक्ति की लाज रख माता!!
सुधा सक्सेना (पाक रूह)
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