गोवर्धन गिरी पूजा आज कृष्ण अंङ्गल तुंग-सुसाज
अतिवृष्टि अत विपदा बाधा हरो हमारे हरि-सुकाज
ब्रजरज कण-कण पावन कर दो राधारानी-धिराज
भक्तबत्सल भक्तदास श्यामलवरण चित्त-महाराज
अंत:करण अनंत-भगवान जय सुमधुर बंसी-बाज
हरि अनंत हरि कथा अनंता राधिका पग-पग पाज-
बहुत खोज लिया तुम्हे इधर उधर
अब कहीं नहीं जाना मुझे
तुम्हे ही उपजना होगा स्वयंभू होकर
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एक अपने हृदय की बात बताऊँ,
अबतक जितनी दुनिया देखी उसमें केवल और केवल मेरे परमप्रिय श्रीकृष्ण ही ऐसे हैं जो कभी कुछ चाहते नहीं अपितु प्रेम ही करते हैं, कभी कुछ माँगते भी नहीं अपितु सदा देते ही हैं, कभी मुझसे नाराज़ नहीं होते अपितु मुझे प्रसन्न ही करते हैं, कभी क्रोधित भी नहीं होते अपितु और प्यार करते हैं, कभी डाँटते नहीं अपितु मेरी सब सुनते ही हैं, कभी मारते नहीं अपितु पीड़ा ही हरते हैं, कभी कटु वचन नहीं कहते अपितु हमेशा मीठी बातों से समझा देते हैं, कभी अपमानित नहीं करते अपितु प्यार से भूल का अहसास कराते हैं, और हाँ, कभी मुझे वो नज़रअंदाज भी नहीं करते अपितु मेरा ही ध्यान कई बार भटक जाता है। यही अनुभव हैं मेरे, विश्वास कीजिए आपको भी यह अनुभव जरूर होगा एक बार लगन तो लगाइये उनसे। मेरे गिरधर साँवरिया को छोड़कर अन्यत्र जहाँ मर्जी आप भटकते रहिये, ऐसे अमृत की प्राप्ति कभी हो ही नहीं सकती। मैं तो कहूँगी मन के अश्वों को लगाम दीजिए और कृष्ण नाम रस का पान कीजिए।
||राधे राधे||-
देखो आया है सावन मास सखी।
मेरे कान्हा के आने की आस सखी।।
कदंब की डाली पर झूला डालो,
फूलों लताओं से इसको संवारो,
अरे आया है दिन बड़ा खास सखी।
मेहंदी लगाओ री पायल पहनाओ,
सुंदर श्रृंगार से मुझको सजाओ,
होगा आज फिर महारास सखी।
फिर से कान्हा मुझको झुलाए,
बंसी की धुन पर सबको नचाए,
अरे नाचेंगे मिल सब साथ सखी।
रह रह कर मेघ बूंदा बरसें,
मोर पपीहा दादुर सब हरसें,
कब बुझेगी दर्शन की प्यास सखी।
चला गया था छोड़कर वह निर्मोही,
फिर से आकर कोई खबर भी न ली,
पाती से भी कोई ना बात सखी।
उमड़ घुमड़ कर आई है बदरिया,
श्याम की इसने भी लाई ना खबरिया,
जी हो रहा मेरा बेहाल सखी।
इस सावन तो आएगा वो,
मृदु मुस्कान दिखाएगा वो।
बंसी की धुन पे नचाएगा वो,
"श्रेया" हो जाएगी निहाल सखी।।-
बेरुखी सी ज़िन्दगी को सँवारने आजा,
मेरे कष्ठो को निवारने आजा।
सुनने को तरस गए तेरी मुरली,
धुन सुनाकर हमे तारने आजा।
गलियां ढूंढे साँवरिया तुझे,
उन रास्तों को जगमगाने आजा।
द्रौपदी की लाज बचाई तुमने,
हमें हर पल पर सँवारने आजा।
अनेकों रूप धरे तुमने,
हमारे हर पल को निखारने आजा।
पल पल तेरी राह देखे ये Dolly
अपनी कृपा दिखा कर उद्धारने आजा..!!
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जिस दिन से उसका पता चला है....
हमारा अता पता नहीं_
उसका पता पता है करना...
अभी पता पता नहीं | 😅❤️-
तेरे सांसों से ही कान्हा ,है मेरा वजूद ..
तेरे होठों से लगी जब, मैं हो गई आसूद ..
मेरे रोम रोम में है, बस तू ही मौजूद..
तेरी ही शरण रहुँ ,यही मेरा मकसूद..-
चपल चंद्र चंचल नयन, मोरपखा सिर माथे लगाय।
मुरली बाजे डोलत पग-पग, पग थिरकत मन अति भाय।
पांव पैंजनी छम-छम बाजे, ग्वाल बाल सब देख लुभाय।
कृष्ण रंग पर पीला अम्बर, चपला चमकत चारु सुहाय।
मइया दही दुग्ध सब दीने, मनमाना चोरी माखन खाय।
गोपीनाथ हांडी सब फोड़े, घट-घट माखन लेत चुराय।
बृज धाम के पावन माटी, परम् प्रेम में डूबत जाय।
प्रेम सरोवर के तट तीरे, कान्हा-गोपी रास रचाय।
यमुना तीर कदम्ब के डारन, बैठ मोहिनी रूप दिखाय।
चीर गोपियन कय चुपके, कान्हा नटखट लेत चुराय।
बाट जोहती सुन रे कान्हा, मोह दूसरा पास न आय।
कान्हा प्रेम-सरोवर एकही, “शची” पल-पल डूबत जाय।-
नयन हैं ऐसे जैसे मृग छौना
देखि हरषि मनु जावे।
उर्मिल वसन बदन ते लिपटा
मनु अति हर्षावे।।
कछ मुरली पग पैजनिया
सुरभित अधर नयन मधुशाला।
मोर पंख अरु लट घुंघराली
कंठ है जैसे कुंभशाला।।-