कुछ खुशियाँ चलो मौसम की रंगत से चुरा लेते हैं,
थोड़ा बारिशों में भीगते हैं काग़ज़ की नाव बना लेते हैं।
नादानियों का दामन थाम शरारत दिल में जगा लेते हैं,
बचपन की यादों को फ़िर से ज़िन्दगी में सजा लेते हैं।-
ये धरा की तपन को..
अम्बर ही महसूस कर सकता हैं..
जब गिरती बारिश की, नन्हीं सी बूँदे जमीं पर..
तो सौंधी सी खुशबू का, सांसो में घुलना लाज़मी हैं..
बचपन की अठखेलियां, कागज़ की कश्ती बनाना..
बेधड़क बारिश में नाचना, वो बारिश में बूँदो संग रोना..
"बारिश की बूँदो का एहसास"-
काग़ज़ की नाव हर बच्चे के बचपन की कहानी थी
ये बात कुछ सालों पुरानी थी
बारिश में भीगने के लिए हर बच्चे का बहाना था
काग़ज़ की नाव को बनाके उसे तैराना था
कोई पुरानी किताब मिलते थी काग़ज़ की नाव बना लेते थे
बारिश आते ही सब बच्चे आनंद लेते थे
आज काग़ज़ की नाव कही नज़र ही नहीं आती
बारिश भी उसके बिना अधूरी सी लगती
बचपन आज बच्चों का इंटरनेट के काले अंधकार में भटक गया है
दूरभाष यन्त्र काग़ज़ की नाव को लेके डूबा है
बारिश का वो सड़क पे बहता पानी
इंतज़ार कर रहा है काग़ज़ की नाव की सवारी की
बच्चों की खिलखिलाती हसी की
आज का बचपन काग़ज़ की नाव की तरह ही हो गया है
दोनों ही कही खो चुके है-
कागज़ की एक नाव बनाई
और पानी संग खूब बहाई
अरे याद आएं वो बचपन के दिन
तब कागज़ पत्थर से होता था फन
अब बैठे दिनभर घर पर ही
और चले मोबाइल व टीवी
पता है.. हुआ तो है जमाना डिजिटल
पर खो गया है वो बचपन वाला कल
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कागज़ की नाव को, अखबार फाड़कर यूँ बनाना,
बारिश के पानी मे भीगकर, मस्ती में उसको बहाना,
डूबती कश्ती देख थोड़ा हँसना,थोड़ा गुस्से से तिलमिलाना,
आज भी याद आता है मुझे,मेरे बचपन का वो गुज़रा ज़माना
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रिमझिम बारिश और कागज़ की नाव,
बहुत याद आते हैं, बचपन गुजर जाने के बाद-
कागज़ की नाव पर बैठ चले वो सब नन्हें
चल पड़े अपने सपनों की ओर
बारिश में कागज़ की नाव को छोड़ देते तैरने
और उछल पड़ते खुशी से
ना जाने कहाँ गुम हो गई वो सारी शैतानियाँ
आज कल के इस ज़माने में सब व्यस्त हैं अपनी अपनी ज़िंदगी में
आज भी याद है मुझे कैसे रो पड़ती थी मैं
जब कागज़ की नाव डूब जाती बारिश के पानी में
अलग ही मज़ा था इन छोटी छोटी खुशियों को बटोरने में
ए बचपन........!!!! वापस आ जाओ एक बार
ताकी जी लूँ मैं फिर से तुझे जी भर के एक और बार-
अब नही आता वो सावन जब,
बाज़ारो और रास्तो पर,
लहरिये की बहार होती थी और,
पानी में कागज़ की कश्तियां तैरती थी.
अब बस बारिश के स्टेटस होते हैं और,
पानी की कश्तियां नही,
प्लास्टिक की थैलियां तैरती है.-
पहले बारिश खुशमिजाज हुआ करती थी-
आज उसकी बूंदों में भी उदासी है,
बड़े हो गए हैं, कागज़ की नाव बनाने वाले -
उनकी चाहत भी अब जुदा सी है!-
कागज़ कि नाव थी बारिश का पानी था
ज़िन्दगी का वो हिस्सा भी सुहाना था..
बचपन में उस सावन से रिश्ता ही अलग था
ना कोई प्रियतम था ना कोई दीवाना था..
बस मासूम बचपन था और
भीगने का एक बहाना था..
ना आज कि चिंता ना कल का ठिकाना था
बारिश थी, दोस्त थे और उस कागज़ कि नाव को बस पानी में बहाना था ...
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