उसने मुझसे पूछा
तुम्हें इश्क़ में क्या बनना है?
मैंने बुझी हुई आँखों से
अपनी लकीरों से भरी हथेली निहारी और कहा-
मुझे नहीं पता
पर मुझे हीर, लैला या शिरी नहीं बनना
अगर कुछ बन सकी तो
मुझे इश्क़ में "अमृता" बनना है
जहाँ मैं गुम हो सकूँ तुम्हारी सिगरेट के धुएँ में
या
मेरी कविताओं के शब्दों में छिपा लूँ तुम्हें
या फिर
अनायास ही लिख दूँ तुम्हारा नाम कहीं..
पर..
शायद ना कर पाऊं मैं ये सब कभी
आखिर इश्क़ में "अमृता" होना आसान नहीं-
स्याही और कागज़ से खेल लेती हूँ ,
हाँ, थोड़ा बहुत ही सही, मैं लिख लेती ह... read more
काश फ़िर वापस लौटा जा सकता कुछ मीठी यादों में
ये अब वाली ज़िन्दगी तो बस फिकी फिकी सी है-
"ज़िन्दगी से एक सुकून माँगा था हमने
ज़िन्दगी में एक सुकून ही ना मिला हमको"-
"दुनिया की सबसे कठोर लड़कियों को मिलने चाहिए सबसे शालीनता से चूमने वाले लड़के,
जो पिघला सके उनका बर्फ-सा कठोर हृदय मात्र एक चुम्बन से"— % &-
मैं ढल जाती हूं,
रोज़ एक खूबसूरत शाम की तरह,
एक नई भोर की उम्मीद में...-
इस नफ़रत की चिंगारी में जाने कितने बर्बाद हुए,
हिन्दू-मुस्लिम करने में,
हम इंसानियत को मोहताज हुए-
बनारस का घाट
गंगा का पानी
और अधूरी प्रेम कहानी..
नाव की सैर
दोपहर की पहर
दुनिया से बैर
बनारस ये शहर ...
शाम की आरती,
आंखे युहीं सब निहारती ..
बनारस का पान,
कचौड़ी गली की दुकान..
चमचम वो मिठाई,
और प्रसाद की ठंडाई...
शिव की अर्चना
तू और मैं,
जैसे तोता और मैना...
आँखों में नमी,
और समय की कमी...
तेरा मेरा अनोखा मेल,
जीवन का अजीब खेल..
जाते समय तेरी वो मुस्कान,
अरे! जब ली थी तूने फिर मेरी जान...
तेरा यूँ बिन बताए जाना,
एक और प्रेम कहानी का बिना कहे ख़त्म हो जाना...-
उनसे मिलने की एक उम्मीद जगाये बैठे हैं
तूफानों में एक चराग जलाए बैठे हैं
जानते हैं कि रहेगा ये सफर अधूरा ही
हम रास्तों को मंज़िलें बनाए बैठे हैं
कहने को था बहुत पर लब खामोश रहे
जाने क्यों हम आँखों को ज़ुबाँ बनाए बैठे हैं
दिल लगाना कोई बड़ी बात तो नहीं थी वैसे
हम अपनों से नहीं दिल गैरों से लगाए बैठे हैं
ख़्वाब में वो आएं तो ज़रा पूछ लें उनसे
आखिर मसला क्या है क्यों यूँ नज़रें चुराए बैठे हैं
मैं जानती हूँ कि तकदीर में नहीं वो मेरी
फिर भी एक उम्मीद ख़ुदा से लगाए बैठे हैं-
मैंने देखा एक आदमी को तोड़ते पत्थर
ज़ोर से करते वार उस पत्थर पर
उसके हाथों में बन चुके थे गहरे घाव
कुछ ऐसा ही होता होगा लोगों के साथ भी
जब वे तोड़ कर जाते होंगे अपने प्रिय शख़्स को
दूसरों को ज़ख़्मी करते वक़्त
कुछ घाव ज़रूर बन जाते होंगे
उनके हृदय पर भी-