कैसी तस्वीर हो गयी है इस शहर की हो गया है सबका जीना मुहाल। ख़ौफ़ज़दा है हरेक चेहरा यहाँ हर नज़र में दिखता है एक सवाल। नहीं करता कोई भरोसा किसी पर हर आदमी हुआ है यहाँ बेहाल। हर रोज़ एक सानिहा गुज़रता है नहीं होता मगर किसी को कोई मलाल। है सराब यहाँ हर किसी की आँख में हर दाँव में छुपी होती है कोई चाल। हर कोई तीर चला रहा दूसरों के काँधे से, बनाकर किसी और को अपनी ढाल। लुटेरे ही बन बैठे हैं शहंशाह यहाँ हो रहा है देखो कैसा ये कमाल।