मोहब्बत के नाम पर अय्याशी सरेआम करते है,
मोहब्बत को मोहब्बत समझे वो लोग अब कहाँ मिलते हैं..
"प्राण जाइ पर वचन ना जाई" अब पढ़ने में ही अच्छे लगते हैं,
इन बातों को निभाने वाले लोग अब कहाँ मिलते हैं..
ये लोग जो दिन में बड़ी-बड़ी बातें करते हैं,
अंधेरों में ढूंढो कभी देखो कहाँ मिलते हैं...
ये आज की दुनिया है साहेब यहाँ सच भी बिकते हैं,
झूठ को झूठ ही कहे वो लोग अब कहाँ मिलते हैं...
नयी सोच के नाम पर सभ्यता-संस्कृति भूल बैठे हैं,
ये नया युग है साहेब यहां राम-सीता कहाँ मिलते हैं..-
"कहाँ थी अब तक, आज मदर्स डे है और तुमने फेसबुक पर कुछ नहीं लिखा?"
"माँ के साथ थी।"-
हम, तुम तक
बन कर हवा आ जाते ।
पर जो तुम ठुकराते
तो बोलो कहाँ जाते ?-
मेरा इतवार मुझसे खफा हो गया है।
बचपन की तरह लापता हो गया है।
कोई पूछे मजहब कोई जात पूछे।
इस इंसान को जाने क्या हो गया है।
गोद में मां सोने को जी चाहता है।
देखे जन्नत एक अरसा हो गया है।
बनकर दर्द दिल में तुम रह रहे हो।
दुनियां को शायद पता हो गया है।
तू पूछे ए.के.एम क्यों नहीं पहले जैसे।
अरे तू भी तो कहीं खो गया है।-
जीवन का महत्त्वपूर्ण प्रश्न
"कहाँ", "कैसे", और "क्यों" नहीं
केवल और केवल "कब" है।-
।।मैं कहाँ और कौन हूँ।।
मैं देशी हूँ, मैं जर्दा हूं,
मैं गांव में उड़ता गर्दा हूं,
मैं कॉफी हूं, मैं चाय में हूं
मैं modern वाली गाय में हूं
मैं नभ में हूँ, मैं तल में हूं
मैं नारीशक्ति बल में हूं,
मैं वैश्या किन्नर नट में हूँ,
मैं ही भारत का वट में हूँ।
(Rest in caption)
-
तू कहां है........
ना जाने वो कौन सी बहार आईं,
जिसमें उदासी संग लायी।
ऐसा क्या जादू कर दिया था, तुम पर फिजाओं ने,
कि बहार तुझे अपने रंग में रंगकर संग ले गयी।।
तू कहां मुझे नहीं पता है, पर ये मेरी आंख का काजल,
मुझसे नाराज़ हैं, हर रोज तुम्हारे बारे में पूछता है।।
मेरे होंठ ख़ामोश है, आंखो में बरसात है,
अगर आसान होता तो भूल जाते हम भी।
पर जनाब आपकी हर अदा से मुझे प्यार है।।
तू कहां है, कुछ खबर नहीं, पर तेरी आहट से में बहक जाती हूं।
तुझे सोचकर ही में खिल जाती हूं, दीदार को तरस जाती हूं।।-