कुछ नये ज़ख्मों का मैं तलबगार हो गया हूँ
लगता है आशिक़ फिर एक बार हो गया हूँ
मुझसे कहती है दुनिया तुम हँसाते बहुत हो
ख़ुद ही से शायद मैं बेज़ार हो गया हूँ
चेहरे पर दिखता है अब कोई और चेहरा
यूँ बताता है आईना, के मैं गद्दार हो गया हूँ
दिखता नहीं मुझमें कोई फायदे का सौदा
अब दोस्तों की जानिब, मैं बेकार हो गया हूँ
सुनता नहीं हूँ अपने दिल की आजकल
रूह की मौत पर मैं शर्मसार हो गया हूँ
कुछ नये ज़ख्मों का मैं तलबगार हो गया हूँ...-
कुछ आर गए, कुछ पार गए
कुछ नदिया की धार गए
जाना था जिसको जहाँ कहीं
क्या कड़ी धूप या रात घनीं !
सरकंडों सी राहों पर
जीवन का पूरा भार लिए
सबकुछ अपना वार गए-
कला हर कलाकार की आत्मा होती है
अपनी कला का त्याग जीते जी मर जाने जैसा है .....
उस दिन के बाद मैंने कभी घूंघरू नहीं पहने....-
मेरे मेहफ़िल में कोई कलाकार
तो कोई शायर भी है कोई अफसर तो कोई कायर भी है
आप कहां उनकी भीड़ में छूप के बैठे हैं मेरे पास
आकर बैठिये कि हम तो ये शहर आये अपके लिए ही है-
किसी ने सच कहा है के ,जीवन जीना एक कला है
और हम सभी इंसानों में, एक कलाकार जन्म से पला है
अदृश्य हैं ,अजन्मा है, अमर है बस जिसने पहचाना
वो सूरज सा चमका है, अन्यथा गुमनामी में ढला है।।
सफल वहीं हुआ है जो हमेशा कांटो पर चला है
दौड़ धूप कर चट्टानों से लड़ा है, भरी दोपहरीें जला है
इतना आसान नहीं है सफल होना , सफल वहीं हुआ
जिसके जिगर में कुछ, कर गुजरने की ज्वाला है।।
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कभी ख़ामोश कभी गमगीन कभी सैलाब नज़र आती है
ये जिंदगी भी कलाकार है शायद हर रोज नया किरदार निभाती है-
हर रोज़ कलाकार की कला
और उसके रोज़गार के बीच भीड़तंत्र होती है,
कलाकार अपनी कला के सपने देख....
रोज़गार की राह पर चलता जाता है,
धीरे- धीरे कलाकार का गला रेत दिया जाता है,
और वो एक आम इंसान बन मुक्त हो जाता है।-
Jo khud ke kalakaar hain
Unka hi spana hota sakaar hain
जो होते खुद के कलाकार हैं
उनका ही सपना होता साकार हैं-