तम से भरी है हर निशा दिशा, चाँदनी भी है खफ़ा खफा,
चेहरा मुझसे तू ने छिपाया क्यूँ, चाँद का अब होगा क्या?
अमावस की है रोज रात यंहा, चकोर भी चुपचाप सा है,
घूँघट का पट तुम उठाओ जरा, चाँद का अब होगा क्या?
दिशा भ्रमित हुई पृरी धरा, सितारा साँझ का है गुम सुम,
क्यों आँखे ढकी है पलकों से, चाँद का अब होगा क्या?
चंद्र वलय है धुँआ धुँआ, श्रृंगार विहीन है ये पूरा आकाश
सोलह श्रृंगार से हो तू दूर क्यों, चाँद का अब होगा क्या?
बादलों का चाँद पर लगा है डेरा, उजास को निगल रहा,
चाँदनी को तुम यूँ ना कैद करो, चाँद का अब होगा क्या?
चाँद पर जो काला दाग है, वो खूबसूरती का निशान है,
जैसे काला तिल तेरे गाल पर, चाँद का अब होगा क्या?
करवा चौथ भी अभी दूर है, सावन को यूँ ना जाया कर, _राज सोनी
दिल के अरमां समझ जरा, "राज" का अब होगा क्या?-
कोई तो उस चाँद को याद कर लो
जो बॉर्डर पर चमक रहा
यहाँ सबका करवाचौथ अपने मेहबूब के साथ
और उसके मेहबूब का करवाचौथ बिन देखे ही हो रहा।-
व्रत रखा है मैंने
खुदा से केवल
हर जनम में तेरा ही साथ
मांगा है मैंने-
कभी छत से कभी खिड़की से कभी
पेड़ो की ओट से, हर रोज तुम्हें निहारती हैं!
कभी मुखडा़ कभी माथें की बिंदिया में
तो कभी दुप्पटे में चार-चांद लगाती हैं!
कभी पूर्ण, कभी अर्धं हर घटते बढ़ते
रुप को तुम्हारें अच्छे से पहचानती हैं!
बिखरती चांदनी दूध सी तुम्हारी, कभी
धुंधलाती कोहरें सी आँखो में सजाती हैं!
ईंद,कभी दूज़, कभी ती़ज तो कभी करवांचौथ
का चांद, ये हर जगह अपनी आभा बिखराती हैं !
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वो चांद है चांद को निहार रहा है
दिल, आसमां के बगीचे में विहार रहा है
कहीं बिखरे फ़ूल की पंखुंडी संभार रहा है
वो बर्फ होकर भी कहीं पत्थर घोर रहा है
वो चांद है चांद को निहार रहा है-