इक सुबह आएगी और सब ठीक होगा...
हर रात की लड़ाई का बस यूँ ख़ामोशी से होता है क़त्ल !!...-
'क़त्ल' कर के 'अभि' मेरा वो 'संगदिल' बेरुख
'क़ातिल' भी कमबख्त खून के आँसूं रोया होगा।1।
मेरे गुज़र जाने के बाद जरूर हुआ होगा उसे इस बात
का एहसास कि उसने अनजाने में क्या खोया होगा।2।
'करवट' बदल-बदल कर ही बीती होगी ए दोस्त!
रात उस हरजाई की, उस रात वो कहाँ सोया होगा।3।
'मिटते' ही नही होंगें 'खून' के 'निशान' मेरे, बड़ी ही
'मशक्कत' के बाद उसने उन धब्बों को धोया होगा।4।
रुकता नही होगा उसकी आँखों का पानी 'अभि' यकीनन
उसने अपने तकियों को कई दफ़ा भिंगोया होगा।5।
जताता नहीं होगा वो 'हाल ए दिल अपना' लेकिन कमरे
के कोने में मेरे होने के एहसास को उसने संजोया होगा।6।
जानता है वो कि जा चुका हूँ मैं लेकिन फ़िर किसी रोज
भूल से ही मेरे लौट आने के सवाल को पिरोया होगा।7।
दुःखता होगा 'दिल' उस 'पत्थर' का भी जब आकर
मजार पर मेरे उसे मेरे नाम के साथ जोड़ा गया होगा।8।
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ख़्वाबों के क़त्ल का रोज बोझ उठाते है नैन मेरे..
तुम्हारी ख़ातिर चाँद को ताक रात गुजार देती हूँ !-
अहिस्ता कीजिये कत्ल मेरे अरमानो का
कही सपनो से लोगो का ऐतबार ना उठ जाए-
जल्लाद का किरदार अब तुझे निभाना होगा ऐ वक्त,
खत्म इंतजार कर दे या फिर कत्ल मुन्तजिर का कर...-
बिखर रही है तबस्सुम की शोखियाँ उनके चेहरे पर,
आज कत्ल करने फैसला करके वो घर से निकले हैं !-
मशगूल थे वो हमारे कत्ल के लिए हथियार ढूंढने में
ढूंढते ढूंढते ज़रा लटें क्या सवांरी हम उसी से मर गए।-
इश्क़ तेरे शहर में एक और कत्ल हो गया
नजरों से बरसाएं तीर जिगर के पार हो गया-
कत्ल हुआ हमारा इस तरह किश्तों में
कभी क़ातिल नजरों से वार किया
कभी पलके झुका कर बेकरार किया-