ज़ंग लगे आईने में आज खुद को देखा
ज़िन्दगी कुछ धुंधलाई सी नज़र आई है
ज़िन्दगी यूं तो नाम है गिर के उठ जाने का
हमने तो हर दूसरे कदम पर ठोकर खाई है
सुना है लोगों से कि आईना झूठ नही बोलता
यूं तो इन दिनों सच भी कहां खरा मिलता है
जंजीरो में बंधा है सच यहां हर चौराहे पे
और लगा आईनों पे पहरा मिलता है
सहसा आया ख्याल कि भ्रम में जी रहे थे हम
ज़र्द तो ज़िन्दगी थी आईने को कसूर दिया
बस बदलना खुद को था बात निरी थी छोटी सी
नाहक ही इसे बना हमने यूं मशहूर दिया
नही दरकार मुझे अब किसी आईने की
अपने जेहन को ही आईना बनाना है
बेखुदी में किये थे खुद से जो भी मैंने
उन वायदों को अब अमल में लाना है
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