खेलती हैं उँगलियाँ तेरी कमर पर ऐसे
मानो गुजर रहा है ऊँट किसी रेगिस्तान से-
रेगिस्तान में फिरता ऊँट हो गया
तेरा थोड़ा प्यार जो मिला था कभी
इस बंजर धूप में बस वही मेरा सहारा है
- साकेत गर्ग-
ऊँट अब किस करवट बैठेगा
किस तरफ अपना रुख करेगा
जिस तरफ भी बैठेगा
अपना कोई फ़ायदा नहीं
अब जाग चुका है आम आदमी
वो जान गया है ये सच
कि वो इन्सान नहीं मात्र
कठपुतली है कुछ हाथों की-
ऊँट- ऐ मालिक, आखिर कब आयेंगे हम पहाड़ के नीचे?
क्योंकि लोग कहते हैं कि "अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे!"
धन्यवाद-
गदहे को
ऊँट प्रचारित करना
ये तेरी अपनी सिद्धि है
या तुझे अपनी विरासत में मिली है
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ये दुनिया ऐसी
जैसे ऊँट का कूबड़
चढ़कर बैठो
तो छितरा जाए शरीर
इधर से उधर
ब्रेक-डाँस करता हुआ
रोमांच सा आभास
ये दुनिया ऐसी
जैसे पागल ऊँट का कूबड़
चढ़कर बैठो
तो एक झटके में नीचे
कोई रोमांच नहीं
बस टूटी हड्डियाँ
और टूटे सपने
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खेलती हैं उँगलियाँ तेरी कमर पर ऐसे😍🌹🌹🌹
मानो गुजर रहा हो ऊँट किसी रेगिस्तान से।😍🤗🤗💕💕💕-
मन ऊँट बन चुका हैं
न जाने किस करवट बैंठेगा ?
महिनो खाए - पिए बिन रह सकता हैं...
पर मरु....मारु बिन नही रह सकता.....
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