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लता
एक स्वर
जो मौन हो गई
मगर गूँज
जो 1942 से संवर्धित है
गूँजती रहेगी
सदियों तक
सदियों से भी
सदियों तक-
परिवारवादी पार्टियों के परिवारों को वह पार्टियाँ भी मदद करती है व अवसर देती है जो परिवारवाद के विरोध का राग अलापती है तथा झंडा धोती है।
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आदमी चाहे
बूढा न क्यो हो गया हो
अपने माता-पिता को याद कर
वह बच्चा हो जाता है-
अन्नदाता किसान
सालभर खालिस्तान समर्थक
आतंकी देशद्रोही रहे
अचानक
अब फिर से अन्नदाता हो गए
और आशा है
संभवतः शायद
मतदाता भी हो जाएँ
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तुझे क्या लगता है
जगह की कमी
फोर बीएचके में जाकर
दूर हो जाएगी
नहीं
आदमी का स्वभाव है..
(पूरी कविता फिर कभी .. ..)-
तुम्हारी बदगोई
तुम्हारी बदगोई का अर्थ
किसी का समर्थन नहीं
तुम्हारी छुद्रता का
तुच्छ प्रदर्शन है..
(पुरी कविता फिर कभी.. )
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दोहा
नहि बनाते दरिद्र को वारिक भी जहँ लोग
यदि बनाया मुखिया तो कर्म किया सो भोग
वारिक =ग्रामीण भोज में खाना परोसने वाला-