कितना भरा हुआ है
दिल मेरा
तेरे ख़ालीपन से-
हर मर्ज़ का इलाज उसकी शायरी में है
शायर वो क्या हुआ के मेरा चारागर हुआ।-
डूबा जो कोई इश्क़ में ऐसा हशर हुआ
उस पर दवा-दुरूद का न फिर असर हुआ,
बर्बाद भी बेकार भी बदनाम हुआ पर
उसको कहाँ ख़बर के वो तो बेख़बर हुआ।
शब-रोज़ मस्त है वो नमाज़ों में इश्क़ की
उससे न पूछिए मियाँ काबा किधर हुआ!
हिसाब इश्क़ में ज़रा दुनिया से जुदा है
इक जो घटा दो में से तो बाक़ी सिफ़र हुआ।
गिरते हैं जहाँ में ये अश्क़-ए-आब रात दिन
मोती हुआ जो अश्क़ इश्क़ का हुनर हुआ।
जो होश में लिखा तो हर्फ़ हर्फ़ रह गए
जब इश्क़ में लिखा लफ़ज़-लफ़ज़ बहर हुआ।-
अभी हमारी बेज़ान-सी ज़िन्दगी में आपने दस्तक भी न दिया है..
और जाने की बात कह दिल को तकल्लुफ दिए जा रहे हैं!-
वाइज़ ने कहा लेकिन, हम हम थे हम रहे,
कमबख़्त बेशरम थे हम, हम बेशरम रहे।-
बायें से हिंदी और दायें से उर्दू लाते हैं
बीच में जहां मिले हिंदुस्तान बनाते हैं।-
आइए, पढ़ते हैं वह प्रसंग जब निराला जी को 1938 में रेडियो स्टेशन पर कविता पाठ के लिए बुलाया गया ।
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काग़ज़ की कसम, मेरी कलम, झूठ नहीं है।
मौसम ये सनम, हम पे सितम, झूठ नहीं है।-
किसी की याद में हम जब भी गजल कहते हैं
हक़ीक़त है कि फिर अच्छी गजल कहते हैं
इश्क़ की बात है समझेंगे फख्त दीवाने
हम न हिंदी की न उर्दू की गजल कहते हैं।
(इश्क़ की गजल)-