उनसे मिलने को
उन्होंने वक्त तक न दिया हमें मिलने को,
वक्त की बुलंदियों को तो देखो आज
वो ख़ुद तरस रहे है हमसे मिलने को...!-
"इतिहास" कभी भी नहीं "भूलेगा" कि,
जब हमारे "मजदूर" कोसों चल रहे थे "नंगे पैर",
खाने को तरस गए, हो गए "भूखे बेहाल",
"सर पे गटरी" कांख में "बच्चें" को लेकर,
उन्होंने जब "दुख" में "रूदन से पिटी अपनी छाती",
तब हम सब "घर" में बैठ "पीट रहे थे थाली"
"बजा" रहे थे जोर जोर से "ताली"
और "दिय जला" बिना आमवस्या ही
मना रहे थे "दिवाली"...!!!
(:--स्तुति)-
मेरी फितरत को जाना नही उन्होंने
देखा , परखा पर पहचाना नही उन्होंने-
बड़े बेताब थी वे हमसे मोहब्बत करने के लिए
और जब हमने उससे मोहब्बत कर लिया
तो उन्होंने अपनी शौक बदल लि-
उन्होंने मेरे दिए लिपस्टिक को
जो अपने कोमल होंठों से लगाया
तलब इसी से थोड़ी कम हो गयी मेरी
एहसास ऐसा हुआ जैसे उन्होंने
मेरे होंठों को अपने होंठों से लगाया।-
उन्होंने हमें ख़ुदमें खुद को खोजना सिखाया था
और कमबख्त़ हमने तो उन्मेहि खुद को पा लिया-
उन्होंने कहा बहुत बोलते हो
अब बरस ही जाओगे क्या
हमने बोला चुप हो गए
ना तो तरस जाओगे-