शब्दांनाही सुचत नाही
कसं बोलकं व्हावं
अन् भावनांना गुंफता गुंफता
त्यांनी कवितेचं रूप घ्यावं-
सही गलत का तजुर्बा नही है अबतक
सवरते रहते हो आप हमें जबतक-
अबोल माझी प्रीत तुला समजेल ना
धुक्यातले दव,बिंदू म्हणून उमजेल ना
कळ्यांतला सुगंध तुजसाठी खुलेलं ना
फुलांतला अर्क रसाळून उमलेल ना-
वो लम्हे थाम कर रखना चाहती हूं
जीसमे साथमें हम दोनो बारीशमें भिगे थें
वो लम्हे थाम कर रखना चाहती हूं
जब पेहली बार नजरोसें मुलाकात हुई थी
वो लम्हे थाम कर रखना चाहती हूं
जिनमें हम एक दुसरेके क़रीब थे
वो लम्हे थाम कर रखना चाहती हूं
जो मिलकर साथमें बिताए थे
वो लम्हे थाम कर रखना चाहती हूं
जब दो दिल मिलनेके लिए मशहूर थे
वो लम्हे थाम कर रखना चाहती हूं
जिनमें बातोंसे नही आँखोंसे गुफ्तगूं होती थीं
वो लम्हे थाम कर रखना चाहती हूं
जब हातोंमें हात लेकर उम्रभर साथ निभानेके वादे किये थे
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मोहब्बत तो आज भी तुमसेही करते है
आयेंगे एक दिन ,इसी इंतजार में रहते है-
उम्र लग गई
हमे मिलते मिलाते हुए
अब ना करेंगे वक्त
दिल को सजते सजाते हुए-
कोणासाठी लिहू आता?
लिहण्यासारखं आता काही नाही
जपलं होतं पुस्तक माझं मी,
जे देत होतं माझीच मला ग्वाही
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तुमको पाना तो शायद हमारे नसीबमें नही
फिर भी करेंगे इंतजार क्योंकि हम तो है राही वही-
मोहब्बत तो इतनी गहरी थी उन दोनोंमें
फिर भी अलग होना पड़ा
क्या करे जनाब जब
जिंदगी के उसूल उनकी मोहब्बत के बिच खड़े थे
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उसकी कलम में कुछ महक तो जरूर है
यूँही नही खूबसूरत सी खिलती वे-