"उत्तराखंड मांगे भू-कानून"
पहाड़ चीरी पाणीं ल्यायी, वे 'माधो' की कूल अर माटी बचावा
टिकी न सकी पहाड़ जैका समणीं, वे 'तोता रांगड' की घाटी बचावा
अब वक्त नी पैथर हूंण कु, एक कदम एथर बढ़ावा अपणां हक ल्यूंण का खातिर गीत 'भू-कानून' कु गावा
(अनुशीर्षक में पढ़ें)👇✍️-
इतना नहीं आसान बसना देवों की भूमि में
क्यों पैसे बर्बाद करते हो शहरी,
जमीन पहाड़ो में खरीद के
न जानते रीत, न जानते रिवाज
एक बार चड़ गया न किसी देवता का रूप
इलाज भी नहीं करवा पाओगे विदेशों में...
# उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून-
अपर धरती अपर जमीन बचावा
उत्तराखंड मा भू कानून क मांग उठावा
नी राल यु पहाड़ नी रेलि जमीन
क्या खेला और कख जैला
अभी भी वक़्त चा संभलजावा
अपर धरती अपर जमीन बचावा
या ठंडी हवा यू ठंडी पाणी
वु हिसार वु काफल की दाणी
यूँक मन की भी भींग जावा
अपर धरती अपर जमीन बचावा
धैय् लगेकी नी सुणं चा त
जेमा बैठ्यु च वे डाल हिलावा
उतराखंड मा भू कानून क मांग उठावा
जाग ग्या युवा अब झुकन् पड़ल
उतराखंडयु ता वुंक अधिकार दीण पडल
सभी युवा अब कमर कस ल्यावा
उतराखंड मा भू कानून की मांग उठावा
अपर धरती अपर जमीन बचावा
By- @हिमांशु कंडवाल
-
हे सत्ताधारी ! अब तो जाग जाओ।
उत्तराखंड की माटी को बिकने से बचाओ।
जितनी जल्दी हो सके भू-कानून लाओ।
हमारे वन-पहाड़ों का अंत होने से बचाओ।
व्यापारी यहाँ बस रहे,व्यापार हमारी माटी का।
मूलनिवासी नौकर बन,करता चाकरी बाहरी का।
जल-जंगल-जमीन हमारे,
लेकिन धीरे-धीरे बिक रहे हैं,अब ये सारे।
कौन इन्हें रोकेगा कुछ तो उपाय सुझाओ।
हे सत्ताधारी ! अब तो जाग जाओ।
जितनी जल्दी हो सके कड़ा भू-कानून लाओ।
विलुप्त होती संस्कृति और सभ्यता को बचाओ।
प्रदेश का मूलनिवासी शरणार्थी न हो जाए।
हमारी वेशभूषा, रहन-सहन और खान-पान प्रभावित न हो जाए।
आज जिस भूमि के स्वामी हैं,कल उसके दास न बन जाएं।
हे सत्ताधारी ! अब तो जाग जाओ।
हिमाचल की तर्ज पर भू-कानून लाओ।
खण्ड-खण्ड होते उत्तराखंड की गरिमा को बचाओ।
हे सत्ताधारी! बस अब जाग भी जाओ।
- अभिषेक थपलियाल।
-
जिस भूमि में जन्म लिया हमनें वो भूमि है उत्तराखंड
आज अपनी पहचान बचाने के लिये लड़ रहा है उत्तराखंड।
आओ जुडो इस मुहिम से....
#उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
#uk_needs_landlaw-
दो दशकों से रियासत का चलना मंद रहा
दरारों से खड़ा वही पुराना स्तम्भ रहा
मैं जानता हूँ भूल तेरी, तुझे बस खुद पर घमंड रहा
क्या सोचता होगा बेचारा, जो तेरे लिए जेलों में बंद रहा
है प्रश्न कई जेहन में मेरे, क्या उत्तर के लिए कोई खंड रहा
सियासती धुन पर नाचकर, यहां तो कुर्सियों का द्वंद रहा
वक्त है थाम लो संस्कृति सभ्यताओं का आँचल
न कहना पड़ जाये हमें, कहाँ वो अब मेरा उत्तराखंड रहा
-
सभ्यता, संस्कृति उत्तराखंड की
खतरे में पड़ी है भारी
होश में आइए उत्तराखंड सरकार
अब है भू-कानून की बारी
कितना सहेगी कष्ट अब देवभूमि हमारी
कुछ तो होगा उपाय, करिए कोई तो तैयारी
या चुपचाप ही रहकर बने रहेंगे सरकारी
होश में आइए उत्तराखंड सरकार
अब है भू-कानून की बारी-
खण्ड खण्ड में बटा था ये,
खण्ड खण्ड से बना था ये।
कलम के साथ जब कदम मिले थे,
तब जाके उत्तराखंड बना था ये।।-