Mani Bhandari   (मनी भंडारी)
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24 APR AT 10:27

पतित पावनी मां गंगा
जहां कल-कल छल-छल बहती है,
है मोक्षदायिनी मां गंगा
अविरल बहती रहती है।
है नमन है वंदन
ऐसी पावन माटी को,
मां चंडी, मां मनसा को
ऐसी पावन घाटी को।

विपथा, विस्त्रोता, त्रिपथगामिनी
भारत का गौरव मां गंगा,
करे कष्ट निवारण, मन को निर्मल
हरि के हरिद्वार में मां गंगा।
जिस धरा पड़े विष्णु के पग
करती उसे बारंबार प्रणाम,
साधु संतों की दिव्य ये नगरी
करूं शीश नवाकर इसे प्रणाम।

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23 APR AT 17:31

भर गया क्या मन तुम्हारा
ऊब गए क्या एक मन से,
जा रहे हो छोड़ मन को
कर चुके क्या पृथक मन से।
मनी भंडारी ✍️✍️(अनुशीर्षक में पढ़ें)👇

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16 APR AT 12:33

राम सिया को निहारें, सिया राम को निहारें
नैना अनिमेष मिले, मंद-मंद मुस्काये।

अतुलित छवि भारी, सिया निज मन हारी
करे ध्यान भूमिजा तो, राघव को ही पाये।

महागौरी को पुकारे, व्रत फलित हों सारे
आरती में, कीर्तन में, मनोरथ ही गाये।

प्रीत पुनीता उपजे, सपने सलौने सजे
अंतस भी राम नाम, प्रीत राग अल्पाये।

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3 APR AT 19:13

रामचरितमानस की तुम, चौपाई सा पावन हो
प्रेम सुधा रस की बूंदों से, भीगा-भीगा आंगन हो
कुसुम कुमुदिनी से मधुरिम, कोना-कोना महक उठे सौंदर्य निराला मन मंदिर का, तुम वो कुसुम कानन हो

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31 MAR AT 10:22

देह की नेह में, प्रेम जल रहा यहां
प्रेम पावस बिना,मन विकल रहा यहां
है दिखावा जहां, है छलावा जहां
प्रेम ऐसा ही अब, पल रहा है यहां

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24 MAR AT 17:53

"होली गीत"

आओ खेलें होली रे... आओ खेलें होली रे...

फाल्गुन पूर्णिमा लेकर आई, रंगों की बहार
आओ सब मिलकर करें, रंगों की फुहार।
मिटाने भेदभाव को, रंगों का आया मेला
खुला रंग नभ में बासंती, मौसम हुआ अलबेला।
मदमस्त मगन हो, प्रकृति भी खेल रही है होली
धरा पर सजी हुई है, रंग-बिरंगे फूलों की रंगोली। आओ खेलें होली रे... आओ खेलें होली रे...
(अनुशीर्षक में पढ़ें ✍️👇)

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19 MAR AT 8:23

इंतजार में खड़े तुम्हारी, बार-बार मैं राह निहारूं
साज श्रृंगार किया जो हमने,बोलो कैसे उसे सवारूं
क्या फ़र्क नहीं तुमको पड़ता,बोलो!क्या दूं सजा तुम्हें अब
दिल में रची बसी जो मूरत, बोलो! क्या मैं उसे उतारूं

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16 MAR AT 7:47

तन में लिए तरंग, मन में लिए उमंग
अंजुरी में भर रंग, होरी खेले राधिका।

पानी भर पिचकारी, पिया जी के सर मारी
अबीर गुलाल लिए, मुस्कुराए राधिका।

नृत्य कर घूम-घूम, संग सखियों के झूम
बासंती गीतों को गाये, इठलाये राधिका।

मीठे-मीठे स्वांग कर, मीत मनुहार कर
हिय पे करे प्रहार, गोरी गोरी राधिका।

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15 MAR AT 16:44

घर की देहरी चौक,डिंड्याली गूंज रही है वही किलकारी
न्याय -न्याय की गूंजे ध्वनि,अब कह रही है लाडो प्यारी
कैसा यहां कानून है और कैसा दंड का विधान है
जो लूट रहे अस्मत नारी की, ऊंची उनकी शान है

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6 MAR AT 10:26

बात दोस्ती की हो जबभी,ये कलम तुम्हारा नाम लिखेगी
गर, रूठ गए तुम हमसे तो, रोज़ नया पैगाम लिखेगी
गंगा सा पावन ये रिश्ता, अक्षर-अक्षर बयां करेगें...
मौन अधर जब भी बोलेंगे,ले नाम तुम्हारा गीत पढ़ेंगे

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