Mani Bhandari   (मनी भंडारी)
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5 SEP 2024 AT 9:09

तिमिर में आलोक भरे जो, तुम वही पवित्र दीप
क्षीरनिधि सम ज्ञान तुमको, क्या लिखूं,तुम अमूल्य सीप
शब्द चुन-चुन भाव गढ़कर, नित्यप्रति गुणगान गाती
हे! ब्रह्मा, विष्णु, महेश रूप, शीश तुमको मैं नवाती

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25 AUG 2024 AT 11:25

द्वंद चल रहा मन भीतर है,कौन यहां जिन्हें प्यारे हम
सत्य सामने होता लेकिन, अपने मन से हारे हम
कहने को संबंध बहुत हैं, रिश्तों की फ़ेहरिस्त बड़ी..
किंतु रहे फिर भी एकाकी, और सदा बेचारे हम

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14 AUG 2024 AT 15:45

भारत के वीरो तुम्हें,भारती पुकारती है
सौगंध खा के माटी की,माटी को बचाइए।

भारती के लाल तुम, दुश्मनों के काल तुम,
सिंह सी गर्जना भर, राष्ट्र को जगाइए।

भृकुटियां तान कर, शत्रुओं की जान हर,
ढाल बन भारती का, कर्तव्य निभाइए।

अधरों पे राष्ट्रगीत, तिरंगे से कर प्रीत,
भारती के भाल पर, ताज को सजाइए।

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29 JUL 2024 AT 12:21

साथ एक के हो गर, प्रेम उससे ही कर,
प्रेम की मिसाल बन, प्रेम आप कीजिए।

भावना से खेल कर, दिखावा छलावा कर,
देखा सीखी में यूं आप, प्रेम मत कीजिए।

दो दिलों के तोड़ तार, ऐसे ना करो प्रहार,
प्रीत-गीत गान कर, प्रेम आप कीजिए।

देह नेह त्यागकर, सीरत निहार कर,
त्यागी अनुरागी बन,प्रेम आप कीजिए।

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6 JUL 2024 AT 23:14

समझा अपना जिसे,वो न अपना रहा
भाग्य के लेख में, बस तड़पना रहा
प्रेम पीयूष, सदा जग में बांटा मगर
प्रेम पाना मेरा, मात्र सपना रहा।

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24 APR 2024 AT 10:27

पतित पावनी मां गंगा
जहां कल-कल छल-छल बहती है,
है मोक्षदायिनी मां गंगा
अविरल बहती रहती है।
है नमन है वंदन
ऐसी पावन माटी को,
मां चंडी, मां मनसा को
ऐसी पावन घाटी को।

विपथा, विस्त्रोता, त्रिपथगामिनी
भारत का गौरव मां गंगा,
करे कष्ट निवारण, मन को निर्मल
हरि के हरिद्वार में मां गंगा।
जिस धरा पड़े विष्णु के पग
करती उसे बारंबार प्रणाम,
साधु संतों की दिव्य ये नगरी
करूं शीश नवाकर इसे प्रणाम।

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23 APR 2024 AT 17:31

भर गया क्या मन तुम्हारा
ऊब गए क्या एक मन से,
जा रहे हो छोड़ मन को
कर चुके क्या पृथक मन से।
मनी भंडारी ✍️✍️(अनुशीर्षक में पढ़ें)👇

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16 APR 2024 AT 12:33

राम सिया को निहारें, सिया राम को निहारें
नैना अनिमेष मिले, मंद-मंद मुस्काये।

अतुलित छवि भारी, सिया निज मन हारी
करे ध्यान भूमिजा तो, राघव को ही पाये।

महागौरी को पुकारे, व्रत फलित हों सारे
आरती में, कीर्तन में, मनोरथ ही गाये।

प्रीत पुनीता उपजे, सपने सलौने सजे
अंतस भी राम नाम, प्रीत राग अल्पाये।

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3 APR 2024 AT 19:13

रामचरितमानस की तुम, चौपाई सा पावन हो
प्रेम सुधा रस की बूंदों से, भीगा-भीगा आंगन हो
कुसुम कुमुदिनी से मधुरिम, कोना-कोना महक उठे सौंदर्य निराला मन मंदिर का, तुम वो कुसुम कानन हो

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31 MAR 2024 AT 10:22

देह की नेह में, प्रेम जल रहा यहां
प्रेम पावस बिना,मन विकल रहा यहां
है दिखावा जहां, है छलावा जहां
प्रेम ऐसा ही अब, पल रहा है यहां

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