अगर संभव होता,
तो मैं इस तपती धूप को
उत्तराखंड भेज देता,
जहाँ नाराज़ बैठे हैं सूर्य देव।
इंद्र देव तो
समुद्रों को उलट चुके हैं
अपनी वर्षा से,
परंतु ये समझ नहीं आता
नाराज़ कौन है?
सूर्य या इंद्र?
पर कोई तो है
जो रुष्ठ है,
क्रोधित, अशांत
या शायद दुखी।
स्थानीय देवता भी
हमसे खिन्न हैं,
तभी तो,
देवभूमि में
जल प्रलय उतर आया है।
🖋️अभिषेक थपलियाल।
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#Dehradun, #Uttarakhand.
I am an proud Pahadi✌️.
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आपदा में जो मर जाते हैं,
वो तो फिर भी तर जाते हैं।
दुखों का पहाड़ तो उन पर टूटता है,
जो उस खौफनाक मंजर के बीच बच जाते हैं।
अपनों को अपनी आँखों के सामने मरता हुआ देख,
जो बच जाते हैं,वो मुर्दा शांति से भर जाते हैं।
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जब सच्ची आस्था हो मन में,
तब पत्थर भी बोल उठते हैं।
और जब कपट भरा हो हृदय में
तब ईश्वर भी मौन रहते हैं।-
ये तो पहले मुझे भी नहीं पता था,
कि असम वैली स्कूल से नाम जुड़ने का अर्थ ही तरक्की करना हैं।
द दून स्कूल के टीचर यहाँ और यहाँ के द दून जाते हैं।
वैलहम देहरादून के यहाँ और यहाँ के वैलहम जाते हैं।
यहाँ जो मेहनत से काम करते हैं भविष्य में वो प्रिसिंपल बन कर बाहर निकलते हैं।
ये देश का जाना-माना बोर्डिंग स्कूल है।
मुझे सिर्फ नाम पहले से पता था। लेकिन इतना अच्छा स्कूल है ये यही आकर पाता लगा।
लेकिन कितने ही लोगो को इसका नाम तक नहीं पता।
शायद नार्थ ईस्ट में होने कि वजह से,नार्थ के लोगो को पाता नहीं।
लेकिन जो टॉप एजुकेशनलिस्ट है उनको सब पाता है।
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' The Assam Valley School '
गुवाहाटी एयरपोर्ट से स्कूल पहुँचने तक के सफर का मेरा अनुभव।
अनुभव अनुशीर्षक में पढ़े 😊-
हर स्थान की अपनी खूबसूरती होती है।
लेकिन जन्मभूमि, जन्मभूमि ही होती है।
देश के किसी भी कोने मे चले जाओ,
अच्छा लगेगा,कुछ अलग देखने को जरूर मिलेगा,
बोली, भाषा, खान-पान, वस्त्र -परिधान भी हटकर होगा।
अगर सीखना या अपनाना चाहो वहाँ की संस्कृति को,
तो बेसक सीखो,इस में कोई समस्या नहीं है।
अवसर मिले तो कुछ नया सीखना भी चाहिए।
सीखना जीवन प्रयन्त चलने वाली प्रक्रिया जो है।
लेकिन अपनी संस्कृति जो हमारी मूल जड़ है।
उसे नहीं भूलना चाहिए।
सब कुछ अनुभव करो, हर जगह भ्रमण करो।
लेकिन कभी-कभी लौट आया करो उस मिट्टी के पास भी,
जिसने तुम्हे रचा है, वह महज़ मिट्टी नहीं है।
पंचतत्व का हिस्सा है,जिससे तुम्हारा शरीर बना है।
उस स्थान की जलवायु तुम्हारे भीतर है।
वो भूमि तुम्हारी जन्मभूमि,मातृभूमि है।
-अभिषेक थपलियाल।
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लोग आप के यहाँ सोते हैं।
और आप दूसरों को बुरा भला कहते हैं।
माफ़ीनामा लिखवाने का कुछ रिवाज़ स है।
क्या आप आँखों पर पट्टी बाँधें बैठे हैं?
यें सिलसिला तो शायद यूँहि चलता रहेगा।
हम तो भुक्तभोगी हैं इसलिए बेधड़क लिख रहें हैं।
15 अगस्त 2024 की बात थी,
आजादी का जश्न था और हमारी आँखों मे रात थी।
क्या कुछ नहीं कहा गया हमें,
चुप चाप सुन लिए,
मानो खून का घूट पी लिए।
निर्णय तो मन ही मन हो गया था,
कि बस भविष्य का 15 अगस्त नहीं देखना हैं यहाँ।
जो सो रहें हैं उनको जगाओ,
जागने वालो को पागल मत बनाओ।
क्योंकि आत्मसम्मान सभी को प्यारा है।
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मैं इतना खुदगर्ज भी नहीं जो The Heritage School का धन्यवाद ना करुँ, ठीक है आप ने मुझे अपने यहाँ मौका दिया.. लेकिन आप ने मुझ पर कोई एहसान नहीं किया था।
मैं already PGT-HINDI था, तो यें ग़लतफहमी तो अपने दिमाग़ से आप निकल दो की आप ने मुझे Senior Classes दी,आप ने मुझे PGT नहीं बनाया वो मैं पहले से ही था।-
शिक्षक कोई बंधुआ मज़दूर नहीं हैं।
लेकिन अफ़सोस की बात है कि देहरादून के कई तथाकथित प्रतिष्ठित डे-स्कूलों में ‘शिक्षक’ शब्द का अर्थ ही समाप्त हो गया है।
प्रबंधन स्वयं को मालिक समझ बैठा है, और शिक्षकों को केवल आदेश मानने वाला कर्मचारी।
‘हम तुम्हें वेतन दे रहे हैं’ — इस कथन की आड़ में उनसे दोगुना कार्य, तीन गुनी अपेक्षाएँ और ज़रा भी सम्मान नहीं दिया जाता।
क्या वे भूल गए हैं कि वेतन देना कोई उपकार नहीं, बल्कि शिक्षक के कठोर परिश्रम का मूल्य है?
शिक्षक भवन नहीं बनाते — वे पीढ़ियाँ गढ़ते हैं।
परंतु जिनकी दृष्टि केवल लाभ और प्रदर्शन पर टिकी हो, वे इस मौन निर्माण को कभी नहीं समझ सकते।
ऐसे प्रबंधन को लज्जित होना चाहिए, जो शिक्षक की गरिमा का गला घोंटते हुए ‘ब्रांड’ और ‘बिज़नेस मॉडल’ का महिमामंडन करते हैं।
याद रखिए, जब एक शिक्षक अपमानित होता है, तब केवल व्यक्ति नहीं, सम्पूर्ण समाज की नींव हिलती है।
-अभिषेक थपलियाल।
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वयक्तिगत फैसलों का खुले मंच से ऐलान नहीं किया जाता।
आपने निर्णय को अपने तक सीमित रखना पड़ता है।
जिंदगी आप की है, तो फैसला भी आप को ही करना है।
जब तक कार्य न हो जाए, उसका ढिंढोरा नहीं पीटा जाता।
मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं ये बोलने का अधिकार किसी को नहीं है किसी को भी नहीं।
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