Abhishek Thapliyal   (अभिषेक थपलियाल।)
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Joined 29 May 2021


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14 HOURS AGO

हे श्रमिक ! तेरे श्रम से ही,
रोशन हुआ है ये जग सारा।
अपने स्वेद कणों से तूने,
वसुधा को सिंचित कर डाला।
शक्ति तुझमें अमिट भरी है।
क्या देह तेरी इस्पात से बनी है ?
विघ्न अनेक तेरी राह में आते।
पर कोई भी तेरे कार्य को न रोक पाते।
न धूप की तपिश, न बारिश की बूंदें,
न सर्दियों में शीत से घबराए तू।
नव निर्माण करता जाए तू।
परिश्रम करके ही खाए तू।
भाग्य में तेरे श्रम है,
और शायद दो रोटी कम है।
मेहनत कमरतोड़ है।
आराम के लिए न ठौर है।
शोक न मन में लाए तू।
दिहाड़ी करके कमाए तू।
प्रभात को काम पर जाए तू।
मजदूर य श्रमिक कहलाए तू।
--अभिषेक थपलियाल।

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27 APR AT 23:41

तब तुम्हारी याद आने लगी।
दिन की रोशनी में दिल बहल जाता है।
यादें तो रात को ही सताया करती हैं।

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22 APR AT 22:27

कि न जाने जिंदगी क्या-क्या रंग दिखाएगी।

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21 APR AT 11:07

बाकी सब सपना है।

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20 APR AT 23:07

और जीवन अभी शेष है।

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19 APR AT 16:10

ये कहो फिर मुलाकात होगी।

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19 APR AT 0:09

जब पैसा पास होगा।

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17 APR AT 18:40

प्रभु,
पतीत पावन।
उदार हृदय,
इस जग में।
दूजा कोई नाहीं।

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17 APR AT 18:36

प्रेम की ही आवश्यकता है।

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16 APR AT 23:03

गोपियाँ नाची।
राधा नाची।
मीरा नाची।
ग्वाले नाचे।
ब्रज बनितह्नी नाची।

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