यूँही कभी तुम, इरादा कर के देखो,
हाले दिल कभी, सांझा करके देखो।
तब्बको ना की ,मुंतज़िर हम भी थे,
अब भी है, ज़रा निगाह कर के देखो।
इश्क़-ए-आड़ में, मतलब फिरते हैं,
इस दफे, माज़ी को भुला करके देखो।
तुम वजह हो, तो आबे हयात क्या है,
क्या मर्ज़ है, कभी बता कर के देखो।
अज़ीज़ रहे, हरगिज़ काबिल ना थे,
इल्तज़ा है, हमे आज़मा कर के देखो।
मुद्दत हुई कि सजदे में बैठा है,'राज',
तुम भी कभी, मिरी दुआ कर के देखो।
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