उलझा रही है मुझे यह कश्मकश आजकल
यह वास्तविक दुनिया है.. या है कोई छल
मजहब के नाम पर लोगों को हिंसा करते देखा है
हां!! मैंने इंसानियत को सूली चढ़ते देखा है,
ओ..खुदा कर कोई ऐसा चमत्कार
जब हो इंसानियत और मजहब की मुलाकात
ना कोई मतभेद हो ना हो कोई तकरार
इंसानियत हो एक चाहे मज़हब हो अनेक
जिंदगी को जीने का सबका मकसद हो नेक।।-
*जमाने की बेदर्दी से भी बहुत कुछ सीख रहे हैं,
ऐसी बेरुखी में भी हम सबको प्यार दे रहें हैं*!..-
सूरत नहीं सीरत बनाओ
अपने दिल को प्यार की मूरत बनाओ
सभी को पसंद करो, सभी से प्यार करो
अपने दिल को इतना ख़ूबसूरत बनाओ
इन्सान ही इन्सान के काम आता है
ख़ुद को एक दूसरे की ज़रूरत बनाओ
आपके दिल में हर किसी के लिए जगह हो
अपने दिल की इतनी बड़ी इमारत बनाओ
हर किसी के दुःख में उसका साथ दो
एक दूसरे की सुनो इन्सानियत बनाओ
आपका का नाम अच्छाई के लिए जाना जाए
ख़ुद को ऐसी शख़्सियत बनाओ
आपके साथ रहना चाहे हर कोई
दुनिया में इतनी इज़्ज़त बनाओ
पैसा तो आज है कल नहीं भी होगा
मदद को आप अपनी शोहरत बनाओ
जितना हो सके दूसरों का भला सोचो
आप ऐसी अपनी आदत बनाओ
ख़ुद भी ख़ुश रहो हमेशा
और सब भी आपसे ख़ुश रहें
ख़ुद को अंदर से इतना ख़ूबसूरत बनाओ-
सुनो...इक हाेकर तुम भी इन्सान
यूं ना इन्सानियत काे कराें शमॆसार !
बेवजह...बेगुनाह,इन मासुमाें पर
साेचाें जरा करते हाे क्यूं अत्याचार !!-
अब किसी के घर का, चिराग बुझने ना पाए
अब किसी मां की , गोद सूनी ना हो जाए
अब किसी बच्चे के सर से,पिता का साया ना उठ जाए
अब किसी दुल्हन की मांग, सुनी ना हो जाए
अब किसी सैनिक के घर, उसकी अर्थी ना जाए
आओ करें प्रार्थना हम सब, दुनिया में शांति छाए
दुआ मांगे हम ईश्वर, अल्लाह, और गॉड से
रूस और यूक्रेन का युद्ध बंद हो जाए-
कहाँ गयी तुम्हारी मर्दानगी?
तुम्हारी मर्दानगी बस औरत की
जिस्म तक है?
क्यो कभी उसके रुह को समझने
की कोशिश नही करते?
क्यो मर्दानगी यहाँ नहीं पहुँच पायेगी?
क्यो तु सिर्फ़ अकेली औरत पर अपनी
मर्दानगी दिखाते हो? दिखाना हैं
तो अपने अंदर कि इंसानियत दिखाओ?
क्यों तुम दरिंदे बन कर औरत के
आत्म-सम्मान के साथ खेलते हो?
तुम्हारा जमीर तुम्हें धितकारता नही हैं?
जब तुम ये सब करते तो कहा जाता है
तुम्हारा मजहब ? कहाँ गयी तुम्हारी मर्दानगी?-
तुम अपने साथ ढेरों खुशियाँ
लाना जिसमें सब एक साथ
एक दूसरे के होकर खुश रहें।
जिसमें इंसानियत कूट-कूट के भरी हो
और एक दूसरे के सुख-दुःख को समझ सके।
जिसमें खाने को भले ही दो रोटी मिले
पर सबको मिले कोई भुखा ना सोये।
जिसमें सबको तन ढकने के लिए वस्त्र
मिले भले वो ज्यादा महँगे ना हो।-
आज फिर से इन्सानियत मेरे अन्दर ठहरी है
पर चोट आज भी उतनी ही गहरी है-
उसे लगता है उसने सिर्फ हाथिनी को मारा,
पर हाथिनी के साथ उसने इंसानियत को भी मारा..!
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