एक कड़वा सच
तू मेरा यार तब तक
मेरा Ego satisfied
करता जब तक
जिस दिन तू मेरा
Ego hurt करेगा
मेरे दिल से तू उतरेगा
क्या करू मैं यारा
आज तो तू मुझे प्यारा-
" किसींका दिल जितने की
कोशीष कभी मत करना ,
क्यू की आजकल दिलवाले
कम और इगो वाले ज्यादा है ...
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मकान मालिक : तुम्हारे अपने नहीं आते यहाँ
किराएदार : वो बहुत दूर रहते हैं नहीं आ सकते
मकान मालिक : क्यों अमरिका वमरिका में हैं क्या?
किराएदार : नहीं उससे भी दूर जिसे इगो कहते हैं ☺
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रिश्ता चाहें कोई भी हो, होता कच्चे धागे की तरह ही है!
बस जरा सी गलतफहमी और जरा सा स्वाभिमान -रिश्ते
की डोर को तोड़ने के लिए काफी है! इसलिए बच कर रहें
एक बार ये धागा तुट गया तो कोई लाख जतन कर लें जुड़ेगा नहीं,
और जुड़ा भी तो गांठ तो पड़ ही जाएगी न!
अगर थोड़ी सी नर्मी या थोड़ा सा झुक जाने
से रिश्ता बच जाए तो भी, सौदा फायदे का है!
रिश्तों के बिच*इगो*कभी नहीं आनी चाहिए-
जिसे तुम मेरा इगो समझ रही हों.
मेरे लिए वो मेरी { Self Respect } है..
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निजता का भाव केवल भोगता है
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आने के बाद जो
चिपक-सा जाता है,
और इतना बड़ा कर देता है
'निजता के भाव' को
कि सब कुछ छोटा हो जाता है,
क्या अपने क्या पराये!
किसी के लिए कोई बात नहीं
कोई मिठास भरी टिप्पणी भी नहीं
जो वाहक बने संवेदना की
स्नेह की, एहसास की,
बस चाहिए होता है
सब कुछ अपने लिए ही
उस 'निजता के भाव' को
"वाह से लेकर... 'कमाल, बहुत ख़ूब, उम्दा,
बेहतरीन, उत्तम, उत्कृष्ट, अद्भुत,...व
क्या बात है!'...तक'..."
यह 'निजता का भाव'
कुछ सोचता नहीं
भाव व संवेदना के विषय में तो नहीं,
केवल भोगता है
'निजता के भाव' को
इसी में उसकी सबसे बड़ी ख़ुशी होती है,
सुख व सुकून तो
किसी और के लिए रह जाता है।
✍️ गोपाल 'जिगर'
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